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लोकाशा-मत में हुए स्थानकवासी और तेरापंथी, जिनप्रतिमा और जिनमन्दिर का निषेध व विरोध करते हैं. परन्तु आश्चर्य तो यह है कि उनके जीवन में ही कितना विरोधाभास देखने को मिलता है।
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जिनमूर्ति को जड़ व प्रभावशून्य कहने वाले ये ही स्थानकवासी /तेरापंथी साधु-साध्वी अपने फोटो खिंचवाते हैं. अनेक पुस्तकों में स्थानकवासी- तेरापंथी साधुओ के अनेक रंगीन व आकर्षक फोटो देखने को मिल सकते हैं। स्थानक वासी व तेरापंथी अपने घरों में अपने धर्मगुरुओं के रंगीन - बड़े-बड़े फोटो सुन्दर तस्वीरों में मढ़वाकर दीवारों पर टाँगते है और हमेशा उनके दर्शन करते हैं,. उनको आदर व सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।
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'प्रभु- प्रतिमा के दर्शन-पूजन में पाप लगता है' की बांग पुकारने वाले ये स्थानकवासी साधु अपनी स्वयं की उपस्थिति में अपनी जन्मजयन्ति का लम्बा-चौड़ा महोत्सव करवाते हैं। दैनिक अखबारों में अपने फोटो सहित बड़े-बड़े विज्ञापन दिलाते हैं।
मृत्यु के बाद भी इन्हीं साधुओं की प्रेरणा से इनके धर्मगुरुओं के स्मारकं बनाये जाते
जो धर्म या समाज अपने धर्म गुरुओं की स्थापना को पूज्य मानता है, उसी धर्म / समाज या सम्प्रदाय के लोग जब वीतराग प्रतिमा को मानने से इन्कार करते हैं - तब हँसी आ जाती है! ओहो ! उनका यह कैसा बेहूदा व्यवहार है।
अपने धर्मगुरुओं की मूर्ति, पादुका, समाधि व फोटो में होने वाली हिंसा की उपेक्षा कर जिनमन्दिर के निर्माण व जिनप्रतिमा के पूजन में होने वाली स्वरूपहिंसा को आगे कर जिनमन्दिर व जिनप्रतिमा को अस्वीकार करने की उनकी बात कितनी युक्तिहीन है !
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'अनुयोग द्वार' आदि आगमग्रन्थों में कहा गया है कि जिस द्रव्य / पदार्थ का भाव- निक्षेप पूजनीय और वन्दनीय है उस द्रव्य / पदार्थ के शेष नामादि निक्षेप भी पूजनीय और वंदनीय हैं तथा जिस द्रव्य / पदार्थ का भाव निक्षेप निन्दनीय और अशुभ है, उसके अवशिष्ट नामादि निक्षेप भी निन्दनीय और अशुभ हैं।
अरिहन्त परमात्मा का भाव - निक्षेप वन्दनीय और पूजनीय है, अतः उनके नाम आदि निक्षेप भी वन्दनीय और पूजनीय हैं तथा अंगारमर्दक द्रव्याचार्य का भाव निक्षेप निन्दनीय, अशुभ होने से उनके नाम आदि निक्षेप भी अशुभ और निन्दनीय हैं।
अरिहन्त परमात्मा का भाव निक्षेप पूज्य होने से उनके नामादि निक्षेपों का भी उतना ही महत्त्व है, जितना भाव- निक्षेप का। अरिहन्त के भाव निक्षेप को पूज्य मानें और उनके नामस्थापना आदि को पूज्य न मानें... तो वह अरिहन्त परमात्मा की आशातना रूप ही है।.