SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रयत्नशील बना जा सकता है। जिस-जिस प्रकार से आत्मविशुद्धि हो सकती है, उन सब उपायों को जुटाने का बहुमूल्य अवसर मिलता है। कितने ही ध्यान-प्रिय लोग पहाड़ की गुफाओं में जाकर, एकान्त में बैठकर आत्मा तथा जड़ के विभाग तथा दोनों में रहने वाली भिन्नता का विचार करते हैं, धर्मध्यान में तल्लीन बनते हैं और शुक्लध्यानादि किया जा सके, उसके लिए अभ्यास करते अधिक शुद्धि का दूसरा कारण भी यह है कि उत्तम मनुष्यों के शरीर के पुद्गलपरमाणु वहाँ फैले हुए हैं। वे सब उत्तम होते हैं। जब भी क्षपक श्रेणी करने की इच्छा हो तब वज्रऋषभनाराच संघयण की परम आवश्यकता है। उसके बिना उत्तम ध्यान हो ही नहीं सकता। इससे पुद्गल की सहायता भी आवश्यक है। जिन व्यक्तियों की मुक्ति निकट में होती है, ऐसे उत्तम पुरुषों के शरीर में ध्यान को पुष्ट करने वाले पुद्गल एकत्र हो चुके होते हैं। अब वे तो निर्वाण को प्राप्त हो चुके हैं, परन्तु उनके वे पुद्गल उनकी निर्वाणभूमि में बिखरे हुए होते हैं। वहाँ अधिकतर अच्छे पुद्गलों का ही समूह होता है और वे अपने में प्रवेश कर जाते हैं। यद्यपि बहुत समय बीत गया है, फिर भी वे सभी पुद्गल नष्ट नहीं होते। ऐसे पवित्र स्थान पर पुण्यवान स्त्री-पुरुषों के ऐसे निर्मल पुद्गलों के स्पर्श से बुद्धि कितनी निर्मल होती होगी, इसका अनुमान अनुभव बिना नहीं लगाया जा सकता। हो सकता है, दुर्भागी मनुष्य को वहाँ अच्छे के बदले खराब पुद्गलों का स्पर्श हो जाय, तो यह उनके कर्म का ही दोष है। मुख्य रूप से तो वहाँ उत्तम पुद्गलों का ही सद्भाव है। इस प्रकार घर की अपेक्षा तीर्थयात्रा में कई गुणा लाभ प्राप्त होता है और धर्मध्यान निर्विन एवं सुगम बन जाता है। प्रश्न 60 - भगवान की पूजा, पूजक को हितकारी है फिर भी चिन्तामणि रत्न की तरह उसका फल तुरन्त क्यों प्राप्त नहीं होता? उत्तर - इस विषय में दीर्घदृष्टि से विचार करने की जरूरत है। प्रत्येक वस्तु को जिस काल में फलने का होता है, वह उस काल में फलती है। कहावत है कि . 'जल्दबाजी से आम नहीं पकते।' जैसे कि खेत में बीज बोने के बाद उसका समय पूर्ण होने पर ही अनाज पकता है, पहले नहीं। गर्भस्थिति प्रायः नौ महीने बीतने के बाद ही प्रसूति होती है। वनस्पति. फल, फूल भी एकदम नहीं पकते। चक्रवर्ती राजा, इन्द्रदेवता प्रमुख की, की हुई सेवा तत्काल नहीं, पर समय आने पर ही फल देती है। मंत्र-जाप भी कोई हजार जाप से तो कोई लाख व कोई करोड़ जाप से सिद्ध होता है। रोगनिवारण के लिये की हुई दवा भी स्थिति पकने पर असर -[147
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy