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________________ जिनालय और उसमें विराजमान श्री अजितनाथ स्वामी की विशालकाय भव्य मूर्ति। (22) श्री वरकाणा में वरकाणा पार्श्वनाथ। (23) श्री सिद्धाचलजी पर हजारों मन्दिर एवं बिम्ब। (24) श्री गिरनारजी पर मन्दिर और सैकड़ों प्रतिमाएँ। (25) श्री सम्मेतशिखरजी पर रहे अनेक जिनप्रासाद। और भी अनेक श्री जिनमान्दर तथा मूर्तियाँ स्थान-स्थान पर श्री जिनपूजा की प्राचीनता एवं शास्त्रीयता का जीवित प्रमाण देती हैं। यदि मूर्तिपूजा का निषेध होता, तो उपर्युक्त जिनमन्दिरों के पीछे करोड़ों रुपयों का खर्च कैसे होता? सूत्रों में किसी स्थान पर भी श्री जिनपूजा का निषेध नहीं है और स्थान स्थान पर श्री जिनपूजा की आज्ञा है। "से किं तं उदासगदसाओ? उयासगदसासु णं उदासयाण णगराई उज्जाणाइंचेइआइंयणखंडाराथाणो अम्मापिथरो समोसरणाइंधम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइथ इडियिसेसा।" श्री ठाणांग सूत्र में श्रावक को, (1) जिनप्रतिमा, (2) जिनमंदिर (3) शास्त्र (4) साधु (5) साध्वी (6) श्रावक-श्राविका - इन सात क्षेत्रों में धन खर्च करने का हुक्म फरमाया है तथा अन्य सूत्रों में भी ये सात क्षेत्र श्रावक के लिए सेव्य बतलाये हैं। श्रावक आनन्द आदि बारह व्रतधारी, दृढ धर्मनिष्ठ श्रावक थे। श्री उत्तराध्ययन के 28 वें अध्ययनानुसार सम्यक्त्व के आठ आचारों का उन्होंने सेवन किया है। उसमें सात क्षेत्र भी आ जाते हैं क्योंकि आचारों में सार्मिक वात्सल्य तथा प्रभावना ये दो आचार भी कहे हैं। साधर्मिक वात्सल्य में साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका - ये चार क्षेत्र जानने तथा प्रभावना में श्री जिनबिंब, श्री जिनमन्दिर तथा शास्त्र - ये तीन गिने जाते हैं। आनन्द, कामदेवादि श्रावकों के अतिरिक्त प्रदेशी राजा ने भी श्री जिनमन्दिर बनवाये प्रश्न 56 - पहले असंख्य वर्षों की प्रतिमाएँ होने का कहा है परन्तु पुद्गल की स्थिति इतने वर्षों की न होने से किस प्रकार प्रतिमाएँ स्थिर रह सकती हैं? उत्तर - श्री भगवती सूत्र में पुद्गल की जो स्थिति बताई है, वह सामान्य से स्वाभाविक स्थिति बताई है परन्तु जिसकी देव रक्षा करते हैं वे तो असंख्य वर्ष तक रह सकते हैं; जैसे श्री जंयुद्धीप प्रज्ञप्ति सूत्र में लिखा हैं कि - "भरतचक्रवर्ती दिग्विजय कर ऋषभकूट पहाड़ पर पूर्व में हो चुके अनेक चक्रवर्तियों के नाम मिटाकर उन्होंने अपना नाम लिखा।" अब सोचो कि "भरत चक्रवर्ती के पहले अठारह कोड़ा-कोड़ी मागरोपम भरतक्षेत्र में -142
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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