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स्तम्भरूप पंडित पुरुषों और उनकी रचनाओं की अवज्ञा करने से महापाप के भागी बनने के सिवाय दूसरा क्या फल मिल सकता है?
प्रश्न 56 - कई लोग कहते हैं कि श्री वीर संयत् 670 में सांचोर गाँव में श्री महावीर स्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा हुई, उससे पहले मूर्ति थी ही
कहाँ?
उत्तर - इस कथन का कोई प्रमाण नहीं। यदि ऐसा हो तो लाखों वर्ष पूर्व मूर्तिपूजा करने के पाठ, मूलसूत्रों में कहाँ से आये? आज भी हजारों तथा लाखों वर्ष के मन्दिर तथा मूर्तियाँ मौजूद हैं। उन मन्दिरों तथा मूर्तियों की प्राचीनता की अंग्रेज शोधकर्ता तथा अन्य दार्शनिक विद्वान भी साक्षी देते हैं।
प्राचीन मन्दिरों और मूर्तियों के लिए कितने ही शास्त्रीय उल्लेख -
(1) श्री आवश्यक मूल पाठ में 'वग्गुर' श्रावक द्वारा मल्लिनाथ स्वामीजी का मन्दिर पुरिमताल नगरी में बनवाने का उल्लेख हैं।
(2) भरत चक्रवर्ती के श्री अष्टापद पर्वत पर चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ उनके वर्ण, लंछन तथा शरीर के कद अनुसार स्थापित करने का श्री आवश्यक सूत्र के मूल पाठ में कथन है।
(3) निजाम हैदराबाद के पास में कुल्पाक गाँव में भरत राजा के समय में भरवाई हुई श्री ऋषभनाथ स्वामी की मूर्ति, जो समय के प्रभाव से मन्दिर सहित जमीन में दब गई थी, कुछ समय पूर्व प्रगट हुई है। जमीन के अन्दर से मन्दिर निकला है। प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं। आँखों से देखकर ज्ञात कर लेना कि वह तीर्थ प्राचीन है अथवा अर्वाचीन? लोग इसे माणिक्यस्यामी की प्रतिमा भी कहते हैं और वह देवाधिष्ठित है।
(4) राधनपुर के पास में श्री शंखेस्वर गाँव में शंखेश्वर पार्श्वनाथजी की मूर्ति गत चौबीसी के श्री दामोदर नाम के तीर्थंकर के समय में बनी हुई, देवाधिष्ठित मौजूद है।
(5) बम्बई के पास अगासी गाँव में श्री मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिमा उनके समय में बनी हुई कहलाती है।
(6) श्रीपाल राजा तथा सौ कुष्ठ रोगियों का कोढ़ श्री ऋषभनाथजी की मूर्ति के स्नान-जल से दूर हुआ था। वह मूर्ति श्री धूलेवा नगर में श्री केसरियानाथजी के नाम से पहचानी जाती है, जिसे लाखों वर्ष हो गये।
(7) राजा रावण के समय में बनी हुई श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथजी की मूर्ति दक्षिण देश में आकोला के पास अंतरिक्षजी तीर्थ में विद्यमान है।
(8) इस चौबीसी के श्री नेमिनाथ भगवान के शासन के 2222 वर्ष पश्चात् गौड़ देशवासी आषाढ़ नाम के श्रावक ने तीन प्रतिमाएँ भरवाई। उनमें से एक खम्भात में श्री
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