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ऐसा तो कैसे मान सकते है ?
श्री जिनप्रतिमा की पूजा - भक्ति, हाल में श्रद्धालु श्रावकवर्ग के द्वारा करने में आती है। उसके लिए तथा पूजा के समय श्री जिनेश्वरदेव की पिण्डस्थादि तीनों अवस्थाओं का आरोपण करने में आता है। उसके लिए सैकड़ों सूत्रों के आधार हैं, जिनमें से कितने ही सूत्रों के नाम मात्र नीचे दिये जाते हैं। इन सूत्रों तथा इनके रचनाकारों की प्रामाणिकता में किसी में दो मत नहीं हैं।
(1) श्री तत्त्वार्थसूत्र तथा अन्य पाँच सौ प्रकरण के रचयिता दस पूर्वधर वाचकशेखर श्री उमास्यातिजी महाराज द्वारा रचित पूजाप्रकरण |
(2) चौदह पूवघर तथा श्री वीरभगवान् के छठे पट्टधर श्री भद्रबाहुस्वामी कृत आवश्यक निर्युक्ति।
( 3 ) दस पूर्वधर श्री वज्रस्यामीकृत प्रतिष्ठाकल्प |
(4) श्री पादलिप्ताचार्य कृत प्रतिष्ठाकल्प |
(5) श्री बप्पभट्टसूरि कृत प्रतिष्ठाकल्प। .
(6) चौदह सौ चंवालीस ग्रन्थों के कर्ता श्री हरिभदसूरिकृत पूजा पंचाशक । (7) इन्हीं महापुरुष द्वारा रचित श्री षोडशक । (8) इन्ही महापुरुष द्वारा रचित श्री ललितविस्तरा । (9) इन्हीं महापुरुष द्वारा रचित श्री श्रावकप्रज्ञप्ति। (10) श्री शालिभद्रसूरि कृत चैत्यवंदन भाष्य | (11) श्री शांतिसूरि कृत चैत्यवन्दन बृहद् भाष्य । (12) श्री देवेन्द्रसूरि कृत लघु चैत्यवन्दन भाष्य । (13) श्री धर्मघोषसूरिजी कृत संघाचारवृत्ति । (14) श्री संघदासगणि कृत व्यवहार भाष्य ।
(15) श्री बृहत्कल्प भाष्य और उसकी श्री मलयगिरिसूरि कृत वृत्ति। ( 16 ) श्री महावीर प्रभु के हस्तदीक्षित शिष्य अवधिज्ञानी श्री धर्मदासगणि क्षमाश्रमण कृत उपदेशमाला ।
(17) जिनके विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थों से वर्तमान विश्व भी चकित हो गया है, ऐसे कलिकालसर्वज्ञ बिरुद धारण करने वाले श्री हेमचन्द्राचार्य कृत श्री योगशास्त्र । (18) उन्हीं द्वारा रचित श्री त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र | ( 19 ) पूर्वधरविरचित श्री प्रथमानुयोग ।
(20) पूर्व चिरंतनसूरि कृत श्री श्राद्धदिनकृत्य सूत्र । ( 21 ) श्री वर्द्धमानसूरि कृत श्री आचार दिनकर
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