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गति में जाना पड़ा, ऐसा समझना चाहिए।
संक्षेप में कहा जाय तो आत्मिक शक्ति का अभाव अथवा उसकी वृद्धि के प्रति उदासीनता मूलधन खोकर दरिद्र बनने के समान है। जिस सत्कृत्य से तीर्थंकर गोत्र भी बँधता है ऐसे प्रभावशाली सत्कृत्य का अनादर करने वाले लोक अपने बैठने की डाली को ही काटते हैं। इतना ही नहीं पर जिस महान् पुण्य के फल से यह श्रेष्ठ मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ है, उसकी जड़ को दुराग्रह रूपी कुल्हाड़ी से काटने की प्रवृत्ति करते हैं।
प्रश्न 54 - श्री जिनपूजादि कार्य करना तो व्यवहार धर्म है। जो निश्चय को प्राप्त हो चुके हैं, उनके लिए ऐसे अधर्मकार्य की क्या आवश्यकता है?
उत्तर- जो व्यवहार धर्म को छोड़कर, केवल निश्चय धर्म की साधना करने जाते हैं, वे दोनों से चूकते हैं, क्योंकि श्री जिनमार्ग में शुद्ध व्यवहार को प्रधान पद दिया गया है, केवल निश्चय को नहीं। यह सिद्ध करने के लिए अनेक दृष्टान्त है। जैसे - .
(1) श्री भरतराजा को केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद भी येश यदलना पड़ा, तो क्या ऐसा किये बिना केवलज्ञान वापिस चला जाने वाला था? नहीं, पर व्यवहार यनाए रखने के लिए गृहस्थ का वेश उतारना पड़ा और मुनिवेश धारण करना पड़ा।
(2) साध बरसते मेह में अपने स्थान पर आवे, परन्तु अकेली स्त्री वाले स्थान पर न रुके। मार्ग चलते समय दूसरा रास्ता न मिले तो साधु हरी दुब पर पैर रखकर चले, परन्तु स्त्री के स्पर्श से बचे क्योंकि यह लोक-व्यवहार से विरुद्ध है।
(3) केयली महाराज दिन और रात में समान रूप से देखते हैं, फिर भी व्यवहार बनाये रखने के लिये रात में विहार नहीं करते हैं।
(4) युगलिक भाई-बहन, पति-पत्नी बनने के बाद भग कर के मरकर देवलोक में जाते हैं, परन्तु ऐसा काम यदि आज कोई करे तो उसे व्यवहार मार्ग का उल्लंघन कहा जाता है तथा महा अनर्थकारी गिना जाता है। निश्चित रूप से जीवहिंसा तो समान ही है।
___(5) श्री महावीर परमात्मा निश्वित रूप से जानते थे कि दोनों साधु मरेंगे पर व्यवहार-पालन के लिए उन्होंने बोलने से इन्कार किया।
(6) श्रावक निरन्तर आरम्भ-परिग्रह में बैठा हुआ है और अनेक जीवों को कष्ट पहुँचाता है। फिर भी चोरी की वस्तु लेना, उसके लिए योग्य नहीं। इसका कारण यही तो है कि लोकव्यवहार का लोप न हो। ___(7) श्री वीरपरमात्मा जानते थे कि - 'मेरे रोग की स्थिति पक गई है, अत: अय यह मिट जायेगा' परन्तु व्यवहार के लिए तथा अन्य साधुओं को यह बतलाने के लिये कि औषधि सेवन से लाभ होता है, प्रभु ने भी
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