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________________ करावे तथा करने वाले को अच्छा समझे। साथ ही साधु अपने दीक्षित शिष्य को वन्दन न करे, परन्तु दूसरे से वन्दन करावे। दूसरी दृष्टि से देखें तो गरीबों को दान देना, साधर्मिक वात्सल्य करना, तपस्वियों को पारणा कराना, मुनिराज के योग्य वस्तुओं की पूर्ति करना आदि धर्म के अनेक कार्य है। फिर भी साधु का आचार न होने से वह यह सब न करे, पर श्रावकों को ऐसा करने का उपदेश दे तथा उसकी अनुमोदना करे। इस न्याय से साधु सर्वथा द्रव्य के त्यागी और निरारंभी होने से द्रव्यपूजा न करे, पर उपदेश द्वारा करावे तथा उसकी अनुमोदना करे। प्रश्न 52 - श्रावक के यारह व्रतों में श्री जिनमूर्ति की द्रव्यपूजा कौनसे यत में आती है? उत्तर - जिसके बिना सभी व्रत निष्फल हैं, ऐसी समस्त शुभ क्रियाओं का मूल सम्यक्त्व है। उसके करने में श्रावक को गृहस्थावास में रहते हुए भी श्री जिनमूर्ति की द्रव्यभाव पूजा करना उचित है। देव तो श्री अरिहन्तदेव, गुरु तो श्री जैनधर्म के शद्ध गुरु और धर्म तो केवलीप्रणीत सत्य धर्म। ये तीनों वस्तुएँ चारों निक्षेपों से सभी को वन्दनीय एवं पूजनीय हैं। इनको मानने वाला सम्यग्दृष्टि और नहीं मानने वाला मिथ्यादृष्टि है। इस प्रकार श्री जिनपूजा सम्यक्त्व का मूल है और सम्यक्त्व सभी व्रतों का मूल है। सम्यक्त्व के बिना सारी क्रियाएँ निष्फल हैं। प्रश्न 53 - तपस्या करने से अनेक लब्धियाँ उत्पन्न होती हैं परन्तु क्या श्री जिनप्रतिमा की पूजा करने से किसी को लब्धि या ज्ञान की उत्पत्ति होना सुनी है? उत्तर - श्री रायपसेणी, श्री भगवतीसूत्र, श्री जीयाभिगम, श्री ज्ञातासूत्र, श्री उदयाई सूत्र, श्री आवश्यक सूत्रादि बहुत से सूत्रों में मूर्तिपूजा कों कल्याणकारी, मंगलकारी और अन्त में मोक्ष देने वाली कहा है। उत्कृष्ट पुण्य जो तीर्थंकर गोत्र है, वह भी जिनपूजा से बँधता है। अन्य देव की मूर्तिकी आराधना से भी लोगों के धन, धान्य, पुत्र आदि की प्राप्ति के दृष्टान्त विद्यमान हैं तो श्री वीतराग की मूर्ति की आराधना से , प्रत्येक मनवांछित लब्धि प्राप्त हो - इसमें क्या आश्चर्य है! इसके सम्बन्ध में दृष्टांत निम्नानुसार .. (1) अनार्य देश का निवासी श्री आर्द्रकुमार श्री ऋषभदेव स्वामी की प्रतिमा के दर्शन से जातिस्मरणज्ञान प्राप्त कर वैराग्य दशा में लीन हुआ, जिसका वर्णन बारह सौ वर्ष पूर्व लिखित श्री सूयगडांग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कन्थ के छठे अध्ययन की टीका में है। (2) श्री महावीर स्वामी के चौथे पट्टधर तथा श्री दशवैकालिक सूत्र के कर्ता श्री शय्यंभवसूरि को, श्री शांतिनाथजी की प्रतिमा के दर्शन से प्रतिबोध प्राप्त हुआ, ऐसा श्री -1 32
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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