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________________ श्री स्थूलभद्रजी के चरित्र में कहा है कि 'कोशा' गणिका ने सरसों के ढेर पर सुई को खड़ा कर उस पर गुलाब का फूल रखकर उस पर नाच किया, फिर भी सुई को अथवा फूल को कोई भी हानि नहीं पहुँची। सोचो कि सरसों पर सुई, उस पर फूल और फूल पर स्त्री का बोझ होते हुए भी किसी को बाधा नहीं पहुँची तो फिर अत्यन्त अचिन्त्य तथा निरुपम प्रभावशाली श्री तीर्थंकरदेव के अतिशय से फूलों को बाधा न हो बल्कि वे प्रफुल्लित हों, इसमें अशक्य क्या है ? जिनके सम्पर्क से करोड़ों जीव समवसरण भूमि में एकत्र होते हुए भी भीड़ का नाम नहीं, उनका प्रभाव सामान्य जन की कल्पना से बाहर होता है, इसमें कौनसी बड़ी बात है ? अकथनीय शक्ति के स्वामी देवता जल-थल में उत्पन्न फूल लाकर, उनके बादल बनाकर ऐसी खूबी के साथ बरसाते हैं कि जिससे मनुष्य के पैरों से उनको हानि अथवा कष्ट न हो । तथा समवसरण के बीच गढ़ की दीवार के पास चारों ओर फूलों की पंक्ति ऐसी बनाते हैं कि जिससे आने-जाने वाले साधुओं के पैर के नीचे भी पुष्प नहीं आवें । जिस प्रकार बाग में चारों ओर हरी दूब होती है पर बीच में आने-जाने की सड़कें तथा खुली जमीन रहती हैं और लोग वहाँ बैठते हैं वैसे ही फूलों की वर्षा होने में आश्चर्य नहीं है। समवसरण में सचित्त वस्तु को बाहर रखना और अचित्त प्रश्न 50 को अन्दर ले जाना, ऐसी आज्ञा है, इसका मेल कैसे बिठाना? - उत्तर - सचित्त वस्तु को बाहर छोड़ने की जो बात कही गई है वह अपने उपयोग की वस्तु के लिए है किन्तु पूजा की सामग्री के लिए नहीं । यदि सचित्त वस्तुमात्र का निषेध करोगे तो मनुष्य आदि का शरीर भी सचित्त है अतः उसको भी नहीं ले जाना चाहिए। पर ऐसा होने से तो समवसरण में कोई जा ही नहीं सकता । जीवयुक्त पदार्थ की अन्दर प्रवेश करने की शक्ति है, अचित्त की नहीं तथा सचित्त को छोड़कर अचित्त को अन्दर ले जाने की ही बात मानोगे तो राजा के छत्र, चँवर, छड़ी, तलवार, मुकुट तथा सभी लोगों के जूते भी अचित्त होने से अन्दर ले जाये जा सकते हैं, पर उसके लिए तो मना है। उसी प्रकार खाने की अचित्त वस्तु भी बाहर छोड़नी पड़ती है। इससे सिद्ध होता है कि पूजा की सामग्री सचित्त हो या अचित्त उसे समवसरण में ले जाने में कोई आपत्ति नहीं। इसी प्रकार यह भी समझना चाहिये कि अपने खान-पान की कोई भी वस्तु चाहे वह अचित्त हो, फिर भी भीतर नहीं ले जाई सकती। प्रश्न 51 - जिस द्रव्यपूजा को साधु नहीं करता, उसका उपदेश देकर दूसरों से करवाने से क्या लाभ? उत्तर - पंचमहाव्रतधारिणी साध्वी को, साधु नमस्कार न करे, वैयावच्च न करे परन्तु श्रावकों को उपदेश देकर आहार दिलावे, वन्दना करावे, दूसरी साध्वी को कहकर वैयावच्च 131
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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