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________________ स्वादिम का प्रतिलाभ करते विचरते हैं, जिनमन्दिरों में जिनप्रतिमाओं की त्रिकाल चन्दन, पुष्प, वस्त्रादिक द्वारा पूजा करते हुए निरन्तर विचरण करते हैं। हे पूज्य ! प्रतिमा-पूजन का उद्देश्य क्या? 'हे गौतम! जिनप्रतिमा को जो पूजता है वह सम्यग्दृष्टि, जो नहीं पूजता वह मिथ्यादृष्टि जानना। मिथ्यादृष्टि को ज्ञान नहीं होता, चारित्र नहीं होता, मोक्ष नहीं होता; सम्यग्दृष्टि को ज्ञान, चारित्र तथा मोक्ष होता है। इस कारण हे गौतम! सम्यग्दृष्टि वाले को जिनमन्दिर में जिनप्रतिमा की चन्दन, धूप आदि द्वारा पूजा करनी चाहिए। श्री नन्दीसूत्र में इस महाकल्पसूत्र का उल्लेख किया हुआ होने से मानने लायक है फिर भी नहीं माने तो उसे नन्दीसूत्र की आज्ञाभंग का दोष लगता है। (3) श्री भगवती सूत्र में तुंगीया नगरी के श्रावकों के अधिकार में कहा है कि - "हाथा कथ यलिकम्म।" अर्थात् - "स्नान करके देवपूजा की" (4) श्री उववाई सूत्र में चम्पानगर के वर्णन में कहा है कि - 'यहुलाइं अरिहंत चेइआई' . अर्थात् - 'अरिहन्त के बहुत से जिनमन्दिर है' तथा शेष नगरों में जिनमन्दिर सम्बन्धी चम्पानगर का निर्देश है। इससे सिद्ध होता है कि प्राचीन समय में चंपानगर का निर्देश है। इससे सिद्ध होता है कि प्राचीन समय में चंपानगर के साथ-साथ दूसरे शहरों में भी गली-गली में मन्दिर थे। (5) तथा श्री आवश्यक के मूल पाठ में कहा है कि तत्तो थ पुरिमताल बग्गुर ईसाण अच्चए पडिमं । मल्लि जिणाथणपडिमा उन्नाए वंसि बहुगोठी ||1|| भावार्थ - पुरिमताल नगर के रहने वाले वग्गुर नाम के श्रावक ने प्रतिमा-पूजन के लिये श्री मल्लिनाथ स्वामी का मन्दिर बनवाया। श्री भगवती सूत्र में जंघाचारण और विद्याचारण मुनियों द्वारा श्री जिनप्रतिमा को -106
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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