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________________ गौ. - "हे भगवन् ! जिनमन्दिर क्यों जाते है?'! भ. - "हे गौतम! ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की रक्षा के लिये जाते है।'' गौ. - 'हे भगवन् ! यदि कोई श्रमणोपासक श्रावक, पौषधशाला में पौषध में रहते हुए ब्रह्मचारी जिनमन्दिर नहीं जावे तो प्रायश्चित्त आता है?'' भ. - "हाँ, गौतम! प्रायश्चित्त आता है। हे गौतम! जिस प्रकार साधु को प्रायश्चित्त, वैसे ही श्रावक के लिए भी प्रायश्चित्त समझना। वह प्रायश्चित्त छट्ठ अथवा पाँच उपवास का होता है।" (2) श्री महाकल्प सूत्र "तेणं कालेणं तेणं समएंणं जाय तुंगीयाए नयरीए बहये समणोयासगा परियसंति संस्बे, सयगे, सिलप्पयाले, रिसिदत्ते, दमगे, पुक्वली, नियद्धे, सुपट्टे, भाणुदत्ते, सोमिले, नरयम्मे, आणंदकाम-देवाइणो जे अन्नत्थ गामे परियसंति इड्ढा दित्ता विच्छिन्नविपुलवाहणा जाय लद्धठ्ठा, गहियट्ठा चाउद्दसट्ठमुविठ्ठपुण्णमासिण सु पडिपुग्नं पोसहं पालेमाणा निग्गंधाण य निग्गंथीण य फासुएणं एसणिज्जेणं असणं पाणं स्वाइमं साइमं जाय पडिलाभेमाणा चेइयालएसु तिसंज्झं चंदणपुप्फ-धूव-वत्थाइहिं अच्चणं कुणमाणा जाय विहरंति से तेणटेणं गोयमा! जो जिणपडिमं न पुएइ सो मिच्छदिविजाणियटयो, मिच्छदिट्ठिस्स नाणं न हवइ, चरणं न हवइ, मुक्खं न हयइ, सम्मदिहिस्स नाणं चरणं मुक्खं च हयइ, से तेण8ण गोयमा! सम्मदिट्ठिसड्ढेहिं जिणपडिमाणंसुगंधपुण्फचंदणविलेवणेहिं पूया कायव्या।" _ ''तुंगी, सावत्थी आदि नगरों के श्रावक शंखजी, आनंद, कामदेव आदि ने त्रिकाल श्री जिनमूर्ति की द्रव्यपूजा की है तथा जिन पूजा करने वाला सम्यग्दृष्टि है, नहीं करने वाला मिथ्यादृष्टि है तथा पूजा मोक्ष के लिये की जाती है।''ऐसा उपर्युक्त पाठ श्री महाकल्प सूत्र में है जिसका भावार्थ निम्नानुसार है - "उस समय तुंगीया नगरी में बहुत से श्रावक रहते थे। । शंख, 2 शतक, 3 सिलप्पवाल, + ऋषिदत्त, 5 द्रमक, 6 पुष्कली, 7 निबद्ध, 8 भानुदत्त, 9 सुप्रतिष्ठ, 10 मोमिल, 11 नरवर्म, 12 आनंद और 13 कामदेव प्रमुख जो दूसरे गाँव में रहते हैं, धनवान, तेजवान, विस्तीर्ण व बलवान हैं। जिन्होंने सूत्र में अनेक अर्थ प्राप्त किये है तथा सूत्र के अर्थ ग्रहण किये है तथा चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या तथा पूर्णिमा की तिथियों के दिन प्रतिपूर्ण पौषध करने वाले, साधु-साध्वी को प्रासुक, एषणीय, अशन, पान, खादिम, -1055
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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