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________________ व्यक्ति भी राजा गिना जाता है तथा विवाहोत्सव के बाद साधारण घर की कन्या भी राजरानी अथवा बड़े घर की सेठानी गिनी जाती है, वैसे ही अल्प मूल्य में मिलने वाली प्रतिमाएँ भी श्री संघ द्वारा विधिवत् प्रतिष्ठा होने पर, साक्षात् परमात्मा के समान पूजनीय बनती हैं। प्रश्न 29 - मूर्ति परमात्मा तुल्य हो तो उसे स्त्री का स्पर्श क्यों? उसे ताले में क्यों रखा जाता है? उत्तर स्त्री के स्पर्श का दोष, भाव अरिहन्त को लेकर है। प्रतिमा तो श्री अरिहन्तदेव की स्थापना है। स्थापना अरिहन्त को स्त्री के स्पर्श से कोई दोष नहीं लगता। यदि कोई स्थापना अरिहन्त तथा भाव अरिहन्त दोनों में एक समान दोषों का आरोपण करना चाहता हो तो वह सम्भव नहीं है। - सूत्रों में सोना-चांदी तथा स्त्री, पुरुष एवं नपुंसक आदि अनेक वस्तुओं के नाम लिखे होते हैं। वे सभी उन-उन नामों के अक्षरों की स्थापना है। उनमें चित्र भी होते है। यदि स्थापना और भाव में समान दोष लगने की कल्पना की जाय तो उनको हाथ में लेने से साधु-साध्वी के महाव्रत समाप्त हो जाने चाहिए, पर ऐसा नहीं होता । शास्त्र तो सभी मुनिगण हाथ में लेकर पढ़ते हैं। उसमें देवलोक के देव-देवियों के चित्र तथा नारकियों के चित्र आदि का सभी स्पर्श करते हैं। वर्तमान पत्रों एवं पुस्तकों में स्त्रीपुरुषों के चित्र पत्ते - पत्ते पर भरे होते हैं, उनका ब्रह्मचारी, मुनिवर आदि भी स्पर्श करते हैं। तो क्या सबके शीलव्रत कायम रहते हैं या भंग हो जाते हैं? चित्रों आदि के स्पर्श से यदि शीलवत नष्ट हो जाता हो तो जगत् में शुद्ध ब्रह्मचर्य को पालने वाला कोई मिलेगा ही नहीं । अत: जैसे चित्र, पुरुषादि की स्थापना है और इनका स्पर्श होने से ब्रह्मचारी को दोष नहीं लगता वैसे ही मूर्ति, श्री अरिहन्त देव की स्थापना है, उसे स्त्री आदि का स्पर्श होने से किस प्रकार दोष लग सकता है ? साधु हरी वनस्पति को हाथ नहीं लगाते हैं, फिर भी ग्रन्थों अथवा पुस्तकों में स्थानस्थान पर झाड़ी या वनस्पतियों के चित्र आते हैं तो उनका स्पर्श करने से क्या वनस्पति के स्पर्श का दोष लगता है ? नहीं लगता। इससे सिद्ध होता है कि भाव अरिहन्त तथा स्थापना अरिहन्त में एक समान दोष आरोपित नहीं हो सकते। ऐसा करने पर महा अनर्थ हो जाता है। दूसरी बात है - ताले चाबी की, भगवान की स्थापना होने के कारण प्रतिमाजी की रक्षा हेतु मन्दिरों को ताला लगाया जाता है। इससे तो उलटी भक्ति होती है, दोष नहीं लगता तथा भक्ति का परम फल मोक्ष है। जैसे भगवान की वाणी की स्थापना रखने वाले सूत्रों की रक्षा के लिए उन्हें उत्तम वस्त्रों में लपेट कर अलमारी में रखकर ताला लगाया जाता है तथा साधु-साध्वियों के चित्रों 93
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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