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लघुसिद्धान्तकौमुद्याम् प्रयोगाः भाषार्थः । प्रयोगाः
भाषार्थः यथाशक्ति-शक्त्यनुसार।
द्वियमुनम्-दो यमुनाओं का समाहार सू० ६१४
(देश विशेष )। सहरि-हरि की समानता।
सू० ६१७ अनुज्येष्ठम् ज्येष्ठ के पीछे।
उपशरदम्-शरद ऋतु के समीप । सचक्रम्-चक्र के साथ ही।
प्रतिविपाशम्-विपाशा नदी पर । ससखि-मित्र के सदृश।
उपजरसम्-बुढ़ापे के समीप । सक्षत्रम्-क्षत्रों की सम्पत्ति।
स० ६१६ सतृणम्-तृणमात्र भी न छोड़कर (खाताहै, उपराजम्-राजा के समीप । स० ६१५
अध्यात्मम्-आत्मा के विषय में । साग्नियु-अग्निग्रंथपन्त पढ़ता है।
स० ६२० सू०६१६
उपचमम्-चर्म के समीप । पञ्चगङ्गम् पाँच गङ्गाओं का समाहार
सू० ६२१ ( देश विशेष )।
| उपसमिधम्-समिधा के समीप ।
__ अथ तत्पुरुषः सू० ६२४
द्विजार्था (यवानः) ब्राझण के लिए लाप्सी कृष्णश्रितः-श्रीकृष्ण के आश्रित । द्विजार्थ (पयः)-ब्राह्मण के लिए दूध । स० १२५
भूतबलिः-भूतों के लिए बलि । शकुलाखण्ड:-शंकुला (सरौता ) से गौहितम्-गौ के लिए हित । किया हुअा टुकड़ा।
गोसुखम्- ,, सुख । धान्यार्थः-प्रयोजन ।
गोरक्षितम्-, रक्षा। अक्षणा काण:-अाँख से काना ।
सू० ६२७ स० ६२६
चोरभयम्-चोर से भय । हरित्रातः-श्री हरि से रक्षित।
सू० ६२६ नखभिन्नः-नखों से कटा हुआ। स्तोकान्मुक्त:--थोड़े से मुक्त । नखनिर्भिन्नः-नखों से कटा हुआ । अन्तिकादागत -समीप से आया। यूपदारु-यज्ञस्तम्भ के लिए लकड़ी। अभ्याशादागत:- , । रन्धनाय स्थाली-रांधने के लिये हाँडी। दूरादागतः-दूर से आया। विजार्थः (सूपः)-ब्राह्मण के लिए दाल । | कृच्छ्रादागतः कष्ट से आया ।