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________________ परिशिष्टम् ३८५ प्रयोगः भाषार्थः प्रयोगः भाषार्थः सू० ८०२ सू०८१२ उखासत्-हाण्डी से गिरा हुआ। | सरसिजम्-कमल । पवित्-पत्ते से गिरा हुआ। सरोजम्- , वाहभ्रट-घोड़े पर से गिरनेवाला। सू०८१३ सू०८०३ प्रजा-सन्तान या प्रजा। उष्णभोजी-गर्म खानेवाला। सू०८१५ स०८०४ स्नातम्-स्नान किया। दर्शनीयमानी-अपने को दर्शनीय मानने- | स्तुतः-स्तुति किया। वाला। कृतवान्-किया। स. ८१६ सू०८०५ शीर्णः-हिंसित। पण्डितम्मन्यः-अपने को पण्डित मानने मिन्नः-भिन्न । वाला। छिन्नः--कटा हुआ । पण्डितमानी , सू०८१७ स०८०६ द्राण:-बुरी तरह से भाग गया। कालिम्मन्या-अपने को काली माननेवाली | ग्लानः-ग्लानि को प्राप्त । स०८०७ सू० ८१८ सोमयाजी-सोमयज्ञ करनेवाला ।। लूनः-कटा हुआ। अग्निष्टोमयाजी-अग्निष्टोमयज्ञ करने जोनः-वृद्ध । स०८०८ सू०८२० भुग्नः-टेढ़ा। पारदृश्वा--मर्मज्ञ । सू० ८०६ उच्छूनः--फूला हुआ। स०८२१ राजयुध्वा-राजा को युद्ध करानेवाला। शुष्कः-सूखा हुआ। राजकृत्वा--राजा बनानेवाला । सू०८२२ स०८११ पक्वः-पका हुआ। सहयुध्वा--साथ युद्ध करनेवाला। सहकृषा-साथ करनेवाला। क्षामः-कृश । सू० ८१६ वाला। सू० १२३
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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