________________
३७३
परिशिष्टम् धातव.
भाषार्थः धातव মাখ: सू० ६१६
हुदा (दाने)-देना। श्रोहाक् (त्यागे)-छोड़ना।
स. ६२४
डुधाञ् (धारणपोषणयोः)-धारण करना, माङ् (माने शब्दे च )-नापना,
पोषण करना। मिमयाना।
स०६२५ सू. ६२२
णिजिर् (शौचपोषणयोः )-शुद्ध करना अोहाङ्-(गतौ) जाना।
पोषण करना। डुभृञ् (धारणपोषणयोः)-धारण करना,
॥३॥ पालना।
दिवादिगणस्थ-धातुपाठः धातवः भाषार्थः धातवः भाषार्थः स० ६२६
दो (अवखण्डने)-काटना। दिवु (क्रीडाविजिगीषाव्यवहारद्युतिस्तुति- | व्यध्-(ताड़ने) मारना, (बींधना) । मोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु)-खेलना,
सू० ६३४ . जय की इच्छा, व्यवहार करना, चमकना, पुष (पुष्टौ)-पुष्ट करना । स्तुति करना, आनन्द उन्मत्त होना, सोना | शुष-(शोषणे)-सूखना । इच्छा करना, जाना।
णश-(अदर्शने)-नष्ट होना। षिवु (तन्तुस-ताने)-सोना ।
स. ६३६ नृती (गात्रविक्षेपे)-नाचना ।
षड (प्राणिप्रसवने)-उत्पन्न करना। सू० ६३०
दूङ्-(परितापे)-दुःखी होना । त्रसी (उद्वेगे)-घबराना।
दीङ्-(क्षये)-क्षीण होना। स० ६३१ शो (तनूकरणे) पतला करना (शस्त्र का डीङ-(विहायसा गतौ)-उड़ना । तीक्ष्ण करना।
पीङ-(पाने) पीना। स०६३३
माङ-(माने) मापना। छो (छेदने)-काटना ।
जनी (प्रदुर्भावे) पैदा होना। षो (अन्तकर्मणि)-नाश करना।
स०६४२ (समाप्त करना)।
| दीपी-(दीप्तौ)-चमकना।