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________________ ३६० लघुसिद्धान्तकौमुद्याम् भाषार्थः प्रयोगाः भाषार्थः विश्वपाः-विश्वम्भर भगवान् । सू० १६७ शङखध्माः-शङ्ख बजाने वाला। हाहाः- देव गन्धर्व। हरिः- पापहर्ता भगवान् । स० १७० कविः-कवि । स० १८४ सखा--मित्र । प्रयोगाः उभौ-दोनों। उमये-दोनों ( समुदाय )। अन्यः-दूसरा। अन्यतरः-दो में से एक। इतरः-इतर (भिन्न)। स्वत्--अन्य। स्व:-" नेमः-प्राधा। समः-सब। सिमः-" पूर्व:-पहला। अपरः-दूसरा। अपर:-अधम । दक्षिण-दक्षिण दिशा। उत्तरा-उत्तर दिशा। अधरः-नीचे। स्वः-श्राप और अपना। अन्तरम्-बाहर या परिधानीय। एक:-एक। सू० १६० प्रथमः-पहला। चरम:-अन्तिम । कतिपये-कई एक। द्वितयः-दूसरा। अल्पः-थोड़ा। अर्थः-आधा। सू० १६१ निर्जर:-देवता। सू० १८५ पतिः-पति। भूपतिः-राजा। स. १६१ कति-कितने । सू. १६२ त्रयः-तीन । प्रियत्रिः-जिसको तीन प्यारे हैं स० १६६ द्वौ-दो। पपी:--सूर्य । वातप्रमी:-मृग। बहश्रयसी:-बहुत कल्याणवाली स्त्रियों वाला। स०१६० अतिलक्ष्मीः --लक्ष्मी को अतिक्रमण करने वाला। स. २०० प्रधीः--परिपक्व बुद्धि ।
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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