SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२ उपदेश-प्रासाद - भाग १ सभा में सहसा अपने रौद्र रूप को प्रकट कर कहने लगा किनिष्कलंक ऐसी जयसेना को छोड़कर मत्सर से युक्त गुणसुन्दरी मेरे द्वारा ही मारी गयी है, इस प्रकार कहकर सर्व स्वरूप कहा । पुष्प आदि से वह देवता के द्वारा पूजित की गयी । बन्धुश्री नगर से निकाली गयी। राजा ने जयसेना से कहा कि- हे साध्वी ! कहो, जगत् में कौन-सा धर्म श्रेष्ठ हैं ? उसने कहा- जैन-धर्म को छोड़कर दूसरेएकान्तिक, स्याद्वाद-शास्त्र से अज्ञ और न्याय युक्त नहीं हैं, बहुत दोषों से दूषित होने के कारण । यह सुनकर राजा ने फिर से पूछा किहे शील-सुगन्धे ! गंगा, प्रयाग आदि तीर्थों के मध्य में कौन-सा तीर्थ तारक है ? उसने कहा कि-हे राजन् ! लोक में अडसठ तीर्थ है, वे स्व-आत्म धर्म के समर्थक नहीं हैं । एक सिद्धाचल ही तीर्थ है, जिस गिरि के ऊपर कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन द्रविड-वारिखिल्ल दस करोड़ मुनियों के साथ में मोक्ष गये थें । फाल्गुन शुक्ल दशमी के दिन नमि-विनमि दो करोड़ मुनियों के साथ में सिद्ध हुए थे । फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन श्रीयुगादिदेव यहाँ पर पूर्व नव्वाणु बार आये थे । यहाँ श्री अजित जिन और श्रीशांतिजिन ने चातुर्मास किया था। तब सत्तरह करोड़ नर मुनि-लिंग से तथा गृही-लिंग से सिद्ध हुए थे। तथा यहाँ वर्षा-काल में पंचानवें हजार द्वितीय जिन के हस्त दीक्षित साधु स्थित हुए थे । उनके मध्य कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन दस हजार साधु केवल प्राप्त कर सिद्ध हुए थें । आश्विन शुक्ल पूर्णिमा के दिन पाँच पांडव बीस करोड मुनियों के साथ में सिद्ध हुए थे। फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी के दिन शाम्ब-प्रद्युम्न कुमार साढे तीन करोड़ मुनियों के साथ में सिद्ध हुए थें । श्रीकालसमुनि(श्रीकालिकमुनि) हजार संयमीयों के साथ में सिद्ध हुए थे।श्रीसुभद्रमुनि सात सो यतियों
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy