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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ ८३ 1 I के साथ में सिद्ध हुए थें । श्री रामचन्द्र पाँच करोड़ मुनियों के साथ, श्री राम के भाई भरत तीन करोड़ के साथ, श्रीवसुदेव की बहोत्तर हजार स्त्रियों के मध्य में पैंतीस हजार स्त्रियाँ सिद्धगिरि के ऊपर मुक्ति को प्राप्त हुई हैं। सैंतीस हजार स्त्रियाँ अन्यत्र सिद्धि को प्राप्त हुई हैं । आगामी - काल में देवकी और रोहिणी जिनत्व को प्राप्त करेंगी । व्याघ्री के द्वारा कीये उपसर्ग से सुकोशल मुनि पंगुलगिरि ऊपर सिद्ध हुए थें । इत्यादि अनंत साधु यहाँ पर सिद्ध हुए थें और सिद्ध होंगें । तथा श्री चैत्र पूर्णिमा के दिन यहाँ सिद्धगिरि के ऊपर श्रीपुंडरीक गणधर पाँच करोड़ मुनियों के साथ में सिद्ध हुए थें । इसलिए हे राजन्! समस्त तीर्थों की यात्रा का फल एक बार शत्रुञ्जय - तीर्थ को देखने से होता हैं । यह सुनकर राजा आदि सर्व ने भी श्रीजिनशासनधर्म को और श्रीसिद्धाचल - तीर्थं को स्वीकार किया । तब राजा ने उसे महोत्सव पूर्वक घर भेजा । क्रम से प्रव्रज्या ग्रहण कर उसने मुक्ति पद को प्राप्त किया । - स्याद्वाद - सिद्धान्त में विचार से युक्त चित्तवाली और कुदर्शन के आशंसन में मुक्त रागवाली उस जयसेना ने मन की प्रशस्ति से क्रम से अनंत सुख को प्राप्त किया । इस प्रकार उपदेश-प्रासाद ग्रन्थ की वृत्ति में और इस प्रथम स्तंभ में पंद्रहवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ । इस प्रकार श्रीउपदेश - प्रासाद में प्रथम स्तंभ समाप्त हुआ ।
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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