SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७५ उपदेश-प्रासाद - भाग १ नियम लेने से प्रति-दिन विशाला का स्वामी चेटक युद्ध में एक बाण को ही छोड़ता था । उसे दुर्जय जानकर बन्धुशोक रूपी समुद्र में मग्न हुए कोणिक ने अट्ठम तप से सौधर्मेन्द्र और चमरेन्द्र की आराधना की। उन दोनों ने वहाँ आकर कहा-हम दोनों का चेटक राजा संयत साधर्मिक है, इसलिए हम दोनों तुम्हारें देह की रक्षा करेंगे । चमरेन्द्र ने महाशिला, कंटक रण और दूसरा रथमुशल नामक दिया । प्रथम युद्ध में कंकर भी फेंका गया शिला के समान बन जाता हैं और काँटा भी शस्त्र के समान बन जाता हैं, तब चौरासी लाख वीरों का वध हुआ और द्वितीय दिन छियानवे लाख वीरों का । कोणिक महाशिला,कंटक और रथ-मुशल इन तीनों के द्वारा भी चेटक राजा के साथ युद्ध करने लगा । उससे त्रस्त हुए चेटक ने नागरथि के पौत्र, श्राद्ध धर्म में कर्मठ, षष्ठ भक्त से भोजन करनेवाले, विक्रमी ऐसे वरुण सेनापति से कहा कि- हे सुभट ! तुम युद्ध करने में तैयार बनो । स्वामी का वचन प्रमाण हैं, इस प्रकार कहकर वह वरुण उस सेना के साथ युद्ध करने लगा । भवितव्यता से कोणिक के वचन से उसके सेनानी के बाण से प्रथम वह वरुण मर्म के ऊपर वींधा गया । वरुण ने भी दो-तीन कदम अपने रथ को चलाकर और उसे मारकर युद्ध से निकल गया । वरुण दर्भ के संथारे के ऊपर.बैठकर आलोचना और प्रतिक्रमण कर तथा समाधि से मरकर अरुणाभ विमान में चार पल्योपम की आयुवाला देव हुआ और विदेह में मोक्ष को प्राप्त करेगा । विशेष से यह वृत्तांत पंचम अंग से जाने । चेटक के द्वारा छोड़ा हुआ बाण कोणिक के आगे इन्द्र के द्वारा वज्र से कीये हुए कवच से टकराकर पृथ्वी पर गिर पड़ा । सत्य प्रतिज्ञाधारी चेटक ने फिर से भी द्वितीय बाण को नही छोड़ा । द्वितीय दिन भी बाण व्यर्थ हुआ। तब चेटक ने विशाला में प्रवेश किया ।
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy