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उपदेश-प्रासाद - भाग १
७१ आकर्षित कर आम्रों को ग्रहण कीये और उन्नामिनी विद्या से शाखा को ऊँचा किया । इस प्रकार कर उसने पत्नी के दोहद को पूर्ण किया ।
अब आरक्षकों ने कटे हुए फलवाले आम्र वृक्ष को देखकर राजा से विज्ञप्ति की । राजा ने अभय से कहा- जिसके पास में ऐसी शक्ति हैं, वह अंतःपुर में भी विप्लव को करे, अतः तुम उसे सात दिन के अंदर प्रकट करो, नहीं तो तुझे चोर के समान दंड दूंगा । अभय ने- वैसा ही हो, इस प्रकार स्वीकार कर प्रति-दिन नगर के अंदर भ्रमण करते हुए रात्रि के समय एक स्थान पर बहुत धुतकारक, परस्त्री गमन करनेवाले, चोर और मांस में आसक्त लोगों के द्वारा कराये जाते हुए संगीत में जाकर नट के आगमन तक उनके आगे एक कथा को कहने लगा । वह इस प्रकार -
वसंतपुर में धन रहित जीर्ण श्रेष्ठी की पुत्री बृहती कुमारी थी। वह वर के लिए कामदेव की पूजा करती थी । एक दिन वह पुष्पों को चुराती हुई माली के द्वारा पकड़ी गयी । उसके रूप से क्षोभित हुए माली के द्वारा वह प्रार्थना की गयी। उसने कहा- मैं अस्पृश्य कुमारी हूँ। जैसे कि
अस्पृश्या, गोत्र में उत्पन्न हुई, वर्ष में अधिक, प्रव्रजित हुई, कुमारी, मित्र की पत्नी, राज-स्त्री और गुरु-पत्नी, यें आठ भी अगमनीय हैं।
फिर तो विवाहित होकर तुम मेरे पास आना, इस प्रकार उस माली के कहने पर उस कन्या ने- वैसे ही उसे स्वीकार कर अपने घर में आयी । क्रम से विवाहित हुई उसने अपने पति से प्रथम दिन रहस्य में अपनी प्रतिज्ञा के बारे में कहा । अहो यह सत्य प्रतिज्ञावाली हैं, इस प्रकार पति के द्वारा अनुमति दी गयी और मणि, मोती, स्वर्ण आभरणों से सहित वह घर से जाती हुई चोरों के द्वारा रोकी गयी।