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उपदेश-प्रासाद - भाग १
देवों में-एक सो और बावन कोटि, चौरानवे लाख, चुम्मालीस हजार, सात सो और साईठ हैं। ____ ज्योतिष्क को छोड़कर तीर्छ जिनबिंबों की संख्या यह हैं - तीन लाख, इक्यानवें हजार, तीन सो और बीस हैं।
भुवनपतियों के मध्य में-तेरह सो और नवासी कोटि तथा साईठ लाख । तथा ज्योतिष्क-भुवनों में असंख्य विद्यमान हैं।
उन बिंबों की कुल संख्या-पंद्रह सो और बैतालीस कोटि, अट्ठावन लाख, छत्तीस हजार और अस्सी हैं।
तथा भरत आदि के द्वारा कराएँ गये, अशाश्वत हैं, श्रुतद्वादशांगी हैं । तथा प्रवचन-चतुर्विध श्रमण संघ, और आचार्य, उपाध्याय अर्थात् पाठक, दर्शन-श्रीमद् जिनशासन अथवा सम्यक्त्व, ऐसे उनमें- अनंतर कहे हुए अर्हत् आदि में पूजा-प्रशंसा आदि विनय करना चाहिए । अन्य ग्रन्थ में अनेक विनय के भेद कहे गये है, किन्तु यहाँ पर दस ही स्वीकार कीये गये हैं।
इस विषय में भुवनतिलक मुनि का यह प्रबन्ध हैं
कुसुमपुर में धनद नामक राजा था, उसकी पद्मावती प्रिया थी और उन दोनों को भुवनतिलक नामक पुत्र था ।
एक बार राजा की आज्ञा से रत्नस्थलपुर, के अमरचंद्र राजा का प्रधान सभा में आकर राजा से विज्ञप्ति करने लगा कि- हे स्वामी ! हमारे राजा की यशोमती पुत्री ने पुष्पाराम में विद्याधरीयों के द्वारा गाये जाते आपके कुमार के गुण-समूह को सुना था । वहाँ से लेकर चित्त में उसी का ध्यान करती हुई पुत्री कष्ट से दिनों को व्यतीत कर रही हैं।
एक दिन राजा ने वियोग के दुःख से दुर्बल हुई पुत्री को देखकर पूछा, तब उसने यथा-स्थित कहा । उसे सुनकर अमरचंद्र राजा ने