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उपदेश-प्रासाद - भाग १. किया और क्रम से हाथी, सिंह, चन्द्र और समुद्र, इन चार स्वप्नों से सूचित बलदेव पुत्र उत्पन्न हुआ । देवकी से कृष्ण का जन्म हुआ। धर्मदासगणि के द्वारा कीये ग्रन्थ से इसे विस्तार से जानें । पश्चात् वसुदेव ने स्वर्ग-सुख को प्राप्त किया।
तृतीय लिंग में जिस श्रीनन्दिषेण मुनि-पुंगव ने मन की सुबुद्धि को धारण की थी, उससे राजाओं के द्वारा वर्णनीय पदवी को प्राप्त कर मोक्ष के सुख को प्राप्त करेगा।
___ इस प्रकार उपदेश-प्रासाद में इस प्रथम स्तंभ में ग्यारहवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ।
बारहवा व्याख्यान अब तीसरा विनय द्वार कहा जाता हैं
अरिहंत, सिद्ध, मुनीन्द्र, धर्म, चैत्य, श्रुत, प्रवचन, आचार्य, उपाध्याय और दर्शन इन दश की पूजा, प्रशंसा, भक्ति, अवर्णवाद का त्याग और आशातना का परित्याग, इस प्रकार सम्यक्त्व में दश प्रकार का विनय हैं। __सुर-असुर कृत पूजा के योग्य होतें हैं, वें अर्हत् कहे जातें हैं। और वें उत्कृष्ट से एक सो और सित्तर तथा जघन्य से दस अथवा बीस विहार करतें हैं । और जन्म से वें उत्कृष्ट बीस तथा जघन्य से दस होतें हैं।
सिद्ध कृतकृत्य होतें हैं और एक आदि दशान्त भेदवाले धर्म का आचरण एवं उपदेश देनेवाले मुनि होते हैं । चैत्य-तीन भुवनों में रहे हुए स्थिर-अस्थिर जिन-भुवन । वहाँ यह शाश्वत-बिंबों की संख्या हैं