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________________ _____५६ उपदेश-प्रासाद - भाग १ अवसान में उसे पुत्र कर पल्लीपति किया । विषय अस्त्र से पीड़ित हुआ वह सुसुमा का स्मरण करने लगा । तब पाप-बुद्धिवाले उसने चौरों से इस प्रकार से कहा कि- हम चोरी करने के लिए राजगृह नगर में धन के घर में जातें हैं और वहाँ जो धन प्राप्त होता हैं वह तुम्हारा और एक सुसुमा मुझे मिलें इस प्रकार की व्यवस्था कर उन चोरों ने उसके घर में प्रवेश किया । धन-श्रेष्ठी आदि को अवस्वापिनी देकर अन्य चौर धन लेकर चले गये । वह सुसुमा को लेकर चला । तब स्वस्थ होकर और कल-कल शब्द कर नगर के आरक्षक और पाँच पुत्र सहित श्रेष्ठी चौर के पीछे चला । उनको देखकर भय से विह्वलित हुए वें चोर धन को छोड़कर एक दिशा से दूसरी दिशा में भागने लगें। नगर के आरक्षक पुरुष धन को लेकर वापिस चल पड़े । सुसुमा को वहन करता हुआ चिलातीपुत्र पाँच पुत्रों से युक्त और हाथ में तलवार लीएँ आते हुए धन को देखकर, कन्या के सिर को छेदकर और धड को वही छोड़कर तथा हाथ में उस सिर को ग्रहण कर चलने लगा । तब धन वहाँ पर आया और सुसुमा को वैसी देखकर क्षणभर विलाप कर, वह वापिस लौटकर अपने नगर में आया । पुत्र से युक्त धन-श्रेष्ठी वहाँ से श्रीवीरविभु के पास में धर्मको सुनने के लिए गया । वह वीर को वंदन कर देशना को सुनने लगा । जैसे कि यह मेरा पिता हैं, यह माता हैं, यह मेरा बान्धव हैं, स्वजन हैं अथवा परिजन हैं, यह मेरा द्रव्य हैं, इस प्रकार ममत्व सहित मनुष्य खुद को यम के वश हुआ नहीं देखता हैं। जिन-वाणी से प्रतिबोधित हुए धन ने दीक्षा ग्रहण की । तीव्र तप से तपकर स्वर्ग को प्राप्त किया । पाँच पुत्रों ने श्राद्ध-धर्म का आश्रय लिया । इस ओर चिलाती-दासी के पुत्र ने हाथ में उस स्त्री के मस्तक को लेकर तथा रुधिर से भीगे हुए शरीरवाला आगे मार्ग में
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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