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भाग १
४८
प्रातिहारी आदि स्वरूप को कहनें लगें । तथा - यदि तीनों लोक के जीव उनके गुण वर्णन करने लगे और उनके आयुष्य का अंत भी न हो अर्थात् परार्द्ध से अधिक आयुष्य वाले उनके सभी गुणों का वर्णन कर सके । इत्यादि कहने पर वह सोचने लगा कि - निश्चय से यह महा धूर्त है, जिससे इसने समस्त लोक को भी विभ्रम में गिरा दिया हैं । परंतु मैं इसे सहन नही करूँगा, किसके समान ? जैसे कि अंधकार समूह को दूर करने के लिए सूर्य के समान और जैसे सिंह केसरों का उखाडना सहन नहीं करता हैं । मैंने वादीन्द्रों को भी मौन स्थापित कये हैं, तब यह गेह - शूर मेरे आगे कौन हैं ? जिस वायु ने गजों को उठाया हैं उसके आगे कपास का ढेर क्या हैं ? उसके बाद इस प्रकार अग्निभूति ने कहा कि - हे भाई ! यहाँ पर आपका कौन-सा विक्रम हैं ? पक्षिराजा कैसे कीटिका के ऊपर पराक्रम करता हैं ? उस वादी-कीट पर आपके प्रयास से क्या प्रयोजन है । हे बन्धु ! वहाँ मैं जाता हूँ । क्या कमलों को उखाड़ने के लिए ऐरावण हाथी ले जाया जाये ?
गौतम ने भाई से कहा- मैंने सभी वादीयों को जीता हैं किन्तु अब भी यह रहा हुआ हैं, किसके समान ? जैसे मूँग पकाने में कोकड़कण के समान, चक्कीओं में अखंड तिल के समान और अगस्ति के द्वारा पीये हुए समुद्र में जल - बिन्दु के समान । प्रायः कर यह वादी गाय के पैर में समानेवाले जल मात्रा के समान हैं ।
उपदेश -
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- प्रासाद
इस अकेले को नहीं जीतने पर, सर्व भी नहीं जीता हुआ होगा । एक बार लुप्त-शीलवाली हुई सती, सदा असती होती हैं। क्योंकि नाव में स्वल्प भी छिद्र विनाश के लिए होता हैं । और गौड़ देश में उत्पन्न हुए पंडित मेरे भय से दूर देश चलें गये हैं, मेरे भय से जर्जरित हुए गुर्जर देश के पंडित त्रास को प्राप्त हुए हैं, मालव- देश के पंडित मृत हुए हैं और तिलंग - देश के पंडित तिल के समान हुए हैं। विश्व में