SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ ४२ नष्ट हुआ हैं, दर्शन-सर्वनय वस्तुबोध रूप सम्यक्त्व, जिन निह्नवों का-यथा-अवस्थित समस्त वस्तु की प्रतिपत्ति में भी एकत्र किसी अर्थ में अन्यथा प्रतिपत्ति से जैसे जिन-वचन को निह्नवते-अपलाप करतें हैं, वें निह्नव हैं, ऐसे उनकी, उपलक्षण से पार्श्वस्थ, कुशील आदि की । उनका संग-संपर्क छोड़ने योग्य ही है, अन्यथा दर्शनहानि होती हैं, इस प्रकार से यह तृतीय श्रद्धा हैं। इस विषय में गत-दर्शन ऐसे जमालि आदि का उदाहरण इस प्रकार से हैं कुंडपुर नामक नगर में भगवान् श्रीमहावीर का भानजा जमालि नामक राज-पुत्र निवास करता था । श्रीवर्धमान की सुदर्शना नामक पुत्री उसकी पत्नी थी । जमालि उसके साथ भोगों को भोगने लगा । एक दिन प्रभु विहार करते हुए वहाँ पधारें । प्रभु को आये जानकर जमालि वहाँ जाकर और प्रदक्षिणा पूर्वक नमस्कार कर इस प्रकार धर्म-देशना को सनने लगा मेरा गृह, मित्र, पुत्र स्त्रीयों का वर्ग, धन, धान्य, व्यवसायलाभ, इस प्रकार करता हुआ मूढ़ नहीं जानता कि- यहाँ जन्तु इन सर्व को छोड़कर चला जाता हैं। इस प्रकार के वचन को सुनकर और घर जाकर बड़े आदर से माता-पिता की आज्ञा लेकर उसने पाँच सो क्षत्रियों के साथ में प्रव्रज्या ग्रहण की । उसके पीछे सुदर्शना ने भी हजार स्त्रियों के साथ में प्रव्रज्या ग्रहण की । ग्यारह अंगों को पढ़ लेने पर उसने प्रभु से विहार के लिए पूछा । प्रभु मौन रहे और कुछ-भी उत्तर नहीं दिया । फिर भी वहाँ से निकलकर पाँच सो साधुओं से युक्त श्रावस्ती में गया । वहाँ तिंदुक-उद्यान चैत्य में स्थित हुआ । और अन्त-प्रान्त आहार से उसे तीव्र रोग-आतंक उत्पन्न हुआ, उससे बैठा हुआ वह खड़े होने
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy