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उपदेश-प्रासाद - भाग १ होगा, उसका नाम अभय देना । सुनन्दा ने कहा-जब पुत्र आठवर्षीय होगा और पूछेगा कि मेरे पिता कहाँ पर हैं, तब मैं उसे क्या कहूँ? तब भंभासार ने खड़ी से भारपट्ट पर इस प्रकार से अक्षरों को लिखें कि- राजगृह नगर में सफेद दीवारवालें हम गोपालक रह रहे हैं । इस प्रकार आह्वान-मंत्र के समान इन अक्षरों को लिखकर नंदा को अर्पण किया । तत्पश्चात् प्रिया को समझाकर और राजगृह में जाकर श्रेणिक माता-पिता के चरणों में गिरा । राजा उसे देखकर हर्षित हुआ और हर्ष के अश्रुजल सहित स्वर्ण-कुंभ के पानी से बड़े महोत्सव के साथ राज्य पर अभिषेक किया । राजा स्वयं ने तप का अंगीकार किया और क्रम से स्वर्ग को प्राप्त किया।
अन्य दिन श्रेणिक ने परीक्षा कर-करके चार सो और निन्यान्हवें मंत्रियों को स्थापित किया और एक ईंगित-आकार को जाननेवाले और श्रेष्ठ मंत्री को करने की इच्छा से राजा श्रेणिक ने अपनी अंगूठी को जल-रहित कूएँ में डाली और इस प्रकार से घोषणा की - जो कूएँ के काँठे से इस अंगूठी को हाथ से ग्रहण करेगा, उसकी मंत्रियों में धुर्यता होगी। उससे सभी मंत्री आदि वहाँ आकर उस अंगूठी को निकालने का उपक्रम करने लगें । वहाँ वे सभी खेदित हुए । इस ओर सुनन्दा ने पुत्र को जन्म दिया । उसका अभय-कुमार नाम रखा । बढ़ता हुआ क्रम से लेख-शाला में छोड़ा हुआ अभय ने दक्षता को प्राप्त की।
____ एक दिन कलह को करते हुए लेख-शालकों ने अभय से कहा कि- यह पिता-रहित हैं। उससे खेदित हुए अभय ने माता से पिता के स्वरूप को पूछा । माता ने कहा- मैं नही जानती हूँ, कोई वैदेशिक विवाहित कर चला गया हैं, परंतु भार-पट्टक पर अक्षर लिखें हुए हैं। उसे पढ़कर और पिता के स्वरूप को समझकर अभय ने नन्दा से कहा