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उपदेश-प्रासाद - भाग १ धारण करनेवाला नित्य ही पर-धन के ग्रहण में पराङ्मुख और जिनेन्द्र आगम को जाननेवाला कुमारपाल जयवंत हो ।
इस प्रकार से संवत्सर के दिन परिमित उपदेश-संग्रह नामक उपदेश-प्रासाद ग्रन्थ की वृत्ति में छठे स्तंभ में इक्यासीवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ।
बयासीवा व्याख्यान अब इस व्रत के पाँच अतिचारों को कहते है. स्तेनानुज्ञा, उनके द्वारा लाये हुए का आदान, वैरुद्ध्यगामुक, प्रतिरूप-क्रिया, मान का अन्यत्व- ये चोरी से संश्रित हैं।
स्तेन अर्थात् चोर, उनको अनुज्ञा या चोरी की क्रिया में प्रेरणा । जैसे कि- आज-कल तुम क्यों व्यापार रहित रह रहे हो ? यदि भोज्य सामग्री नहीं है तो मैं तुमको देता हूँ । यदि तुम्हारे द्वारा लायी हुई वस्तु का विक्रेता नहीं है, तो मैं विक्रय करूँगा । इत्यादि वचनों से अथवा चोरी के उपकरण हल की फाली आदि के अर्पण से चोरों को चोरी की क्रिया में नियोजित करना । इस प्रकार से करने पर वह भी चोर ही है । नीतिग्रन्थ में कहा है कि
चोर, चोर को अर्पण करनेवाला, मंत्री, भेदज्ञ, चोरी की गयी वस्तु को खरीदनेवाला, अन्न देनेवाला और स्थान देनेवाला- इस प्रकार से सात प्रकार के चोर कहे गये है।
यहाँ पर भी भंग के सापेक्ष और निरपेक्ष से प्रथम अतिचार है । तथा तत् शब्द से चोर के साथ परामर्श है।
चोरों के द्वारा लायी गयी कुंकुमादि को मूल्य आदि से आदान-ग्रहण करना । लोभ के दोष से चुरायी हुई वस्तु को खरीदने