________________
३८२
उपदेश-प्रासाद - भाग १
मंत्र आदि के भेद में दोष को कहते है कि
बुद्धिमंत कदाचित् भी गुह्य वाक्य को न कहे क्योंकि मर्म के कथन से वणिक् स्त्री की मृत्यु से दुःख-भागी हुआ था । जैसे कि
वर्णपुर में पुण्यसार श्रेष्ठी था । एक बार वह स्व-प्रिया को लाने के लिए ससुर के घर गया । अन्य में आसक्त उसे हठ से लेकर मार्ग में जाते हुए प्यास से पीड़ित हुआ कूएँ से पानी को खींचता हुआ उसके द्वारा स्व-पति कूएँ में गिराया गया । वह भागकर स्व-गृह में गयी । पिता के पूछने पर उसने कहा कि- मेरे पति को चोरों ने लूटा है और मार दिया हो अथवा नहीं । मैं भागकर यहाँ आयी हूँ। इस प्रकार से कहकर वह गृह में स्वेच्छा से रही । मुसाफिरों ने पुण्यसार को भी अल्प जलवालें कूएँ से बाहर निकाला । पुनः वह ससुर के गृह गया । तब मार्ग में स्वरूप के पूछने पर उसने कहा कि- चोरों ने मुझे जीवित छोड़ा है और यह भागकर यहाँ आयी है, वह श्रेष्ठ हुआ है। इस प्रकार से मर्म को ढंकने से पति के ऊपर अत्यंत प्रमुदित हुई उसे लेकर गृह में आया । क्रम से प्रीति पर उन दोनों को पुत्र हुआ।
___ एक बार भोजन कर रहे पुण्यसार के पात्र में वायु से उछाले हुए धूल को गिरते हुए उसने अपने छाती के आँचल से निवारण किया। तब पूर्व चरित्र को स्मरण कर उसने थोड़ा स्मित किया । रहस्य में पुत्र के द्वारा हास्य का कारण पूछने पर उसने कैसे-भी पुत्र के आगे उसके चरित्र को कहा।
एक बार स्व जाति के गर्वको करती हुई अपनी स्त्री को रहस्य में माता के चरित्र को कहा कि- तुम्हारी जाति को धिक्कार है, क्योंकि
दुश्चरित्रवाली स्त्रियाँ प्राण के संशय में क्षण में ही पति, पुत्र, पिता और भाई को अकार्य में भी आरोपित करती है।
उससे स्त्रियों में कौन-सा प्रेमोदय हो ? क्योंकि