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________________ ३७४ उपदेश-प्रासाद - भाग १ असत्य अविश्वास का मूल कारण हैं और विश्वास का स्थान, विपत्तियों का दलन करनेवाला, देवों के द्वारा आराधन किया गयाये दोनों श्लोक सिंदूर प्रकर में है। ___ महान् पुरुष अचिन्त्य माहात्म्य को करनेवाले सत्य वचन को कहते हैं । लोक-वचन भी है कि- पांडु पुत्रों की प्रिया के सत्य कहने पर आम फलित हुआ था । जैसे कि हस्तिनापुर में माघ मास में युधिष्ठिर राजा के उद्यान में अट्ठयासी हजार मुनि आये थें । राजा के द्वारा भोजन के लिए प्रार्थना करने पर उन्होंने कहा कि- हे धर्म-पुत्र ! आज तुम आम के फलों से भोजन कराओगे तो हम भोजन करेंगें, अन्यथा नहीं । उसे सुनकर चिन्तातुर हुए युधिष्ठिर ने विचार किया कि- अकाल में उनको कैसे प्राप्त करूँ ? इस ओर नारद-ऋषि ने आकर के कहा कि- हे राजेन्द्र ! यदि आपकी पट्ट-रानी द्रोपदी सभा में पाँच सत्य कहेगी तो अकाल में भी आम के फल प्रकट होंगें । उसे अंगीकार करने पर सभा में आयी द्रोपदी से नारद ने कहा कि पंच-तुष्टि, सतीत्व, संबंध से अतिशुद्धता, पति ऊपर प्रेम और मन की तुष्टि- ये पाँच सत्य कहो । इस प्रकार से पूछने पर झूठे वचन से भय-भीत हुई द्रोपदी सती ने स्त्री गुह्य को कहा हे नारद ! मेरे पति पाँच पांडव योद्धा और सुरूपधारी है, तो भी मन छट्टे पर भी वांछा करता है ।। हे नारद ! एकांत नहीं है, क्षण नहीं है, प्रार्थना करनेवाला पुरुष नहीं है । उससे नारीयों को सतीत्व उत्पन्न होता है । सुरूपधारी पुरुष को, पिता, भाई और पुत्र को देखकर, पानी 1. जैनागम में यह बात नहीं है ।
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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