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________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ ३६८ कन्या, गाय, भूमि, न्यास का अपहरण तथा कूट-साक्ष्य, ये पाँचों ही स्थूल असत्य कहे गएँ हैं। वहाँ द्वेष आदि से अविष कन्या को विष कन्या, सुशीला को दुःशीला अथवा विपरीत से कहनेवाले को कन्यालीक दोष लगता है । उपलक्षण से यह सर्व भी द्विपद के झूठ का भी हैं । इस प्रकार से ही अल्प दूधवाली गाय को बहुत दूधवाली कहनेवाले को गाय संबंधी झूठ का दोष लगता है। यह भी सर्वचतुष्पदों का उपलक्षणवाला हैं । दूसरों के स्वाधीन भूमि को अपनी, ऊषर क्षेत्र को अनूषर कहनेवाले को भूमि-अलीक दोष लगता है । यह सर्व भी अपद विषय की उपलक्षणवाली है। यहाँ पर कहते है कि- द्विपद, चतुष्पद और अपद का ग्रहण किस कारण से नहीं किया है ? सत्य है, कहते है कि- लोक में भी कन्यादि झूठोंकी अति गर्दा, भोगान्तराय, द्वेष वृद्धि आदि दोष स्पष्ट ही है । तथा स्थापित किया जाता है, अथवा रक्षण के लिए अन्य को समर्पित किया जाता है, वह न्यास है और वह स्वर्ण आदि है । उसका अपहरण महा-पाप हैं । उसका अदत्तादानत्व होने पर भी वचन की ही प्राधान्यता से मृषावादत्व है । तथा लभ्य-देय के विषय में साक्षी कीये हुए का लाँच, मत्सर आदि से कूट-साक्ष्य के प्रदान से कूटसाक्षित्व दोनों भवों में अनर्थका हेतु है, जैसे कि-वसु राजा के समान अज शब्दार्थ के साक्ष्य में । इस विषय में यह प्रबंध है शुक्तिमति में क्षीरकदंबक उपाध्याय के समीप में उसका पुत्र पर्वत, राज-पुत्र वसु और ब्राह्मण-पुत्र नारद, ये तीनों भी पठन करते थें । एक दिन महल के ऊपर वें पढतें हुए थक कर सो गये। तब आकाश में जाते हुए दो चारण-ऋषि परस्पर कहने लगें कि- इन तीनों छात्रों के मध्य में एक स्वर्गगामी है और दो नरकगामी है । यह
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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