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उपदेश-प्रासाद - भाग १ गया वह सिंह अदृश्य हो गया और वह पापात्मा नरक में गया । उस पाप की आलोचना कर मुनि स्वर्ग में गये । इसलिए रात्रि में बाढ़ स्वर से पठन-पाठन नहीं करना चाहिए ।
यहाँ पर अन्य भी उदाहरण है, जैसे कि
कोई श्रावक रात्रि के चरम प्रहर में आवश्यक को पढ़ता हुआ पड़ौसी स्त्री के द्वारा सुना गया । उसके द्वारा अल्प रात्रि को मानकर धान्यों को पीसने के समय में गालक [गेहुं पीसने की चक्की] के अंदर स्थित सर्प का मर्दन किया गया । उस आटे की रोटीयों को खानेवालें स्वजन मरण को प्राप्त हुए । ज्ञानी से उसकी शुद्धि को जानकर और उस पाप की आलोचना कर श्रेष्ठी स्वर्ग में गया ।
हिंसा के प्रकार बहुत हैं । जिनेन्द्र शास्त्र से अथवा निज बुद्धि से जानकर जो श्रेष्ठ पंडित त्याग करते हैं, वें शिव नामक पवित्र लक्ष्मी को प्राप्त करतें हैं।
इस प्रकार से संवत्सर के दिन परिमित उपदेश-संग्रह नामक उपदेश-प्रासाद ग्रन्थ की वृत्ति में पञ्चम स्तंभ में तिहत्तरवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ।
चौहत्तरवा व्याख्यान अब हिंसा और अहिंसा के फल को प्रदर्शित किया जाता है
अहो ! जैसे कि सूर और चन्द्र के समान ही हिंसा प्राणी को निरन्तर दुःख और अहिंसा परम सुख को देती है।
यहाँ श्लोक में कहा हुआ यह निदर्शन है
जयपुर में शत्रुञ्जय राजा के सूर और चन्द्र नामक दो पुत्र थे । पिता के द्वारा ज्येष्ठ को युवराज पद के दिये जाने पर अपमान से चन्द्र