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उपदेश-प्रासाद
भाग १
इस प्रकार से परशासन में हैं ।
तथा पूज्यों के द्वारा कहा गया है कि- श्वासोच्छ्वास के पुद्गल चार स्पर्शवाले होते है । आठ स्पर्शवालें वायुकाय जीवों का हनन करतें हैं ।
तथा भविष्य काल के ज्ञान को प्रकाशित नहीं करना चाहिए, जैसे कि
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ज्योतिष, निमित्त, अक्षर, कौतुक, आदेश, भूति कर्मों के द्वारा तथा इनके करण, अनुमोदन और प्रेरणा से साधु को तप का क्षय होता है ।
इस विषय में यह दृष्टांत है
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क्षितिप्रतिष्ठ में एक क्षत्रियाणि का पति विदेश में गया हुआ था । उसके घर में एक मुनि गोचरी के लिए आये । तब उसने पूछा कि - मेरा पति कब आयेगा ? तब उस मुनि ने निमित्त से कहा कि- पाँच दिनों के बाद । तत्पश्चात् वह आया और यह बात सत्य हुई | उस अवसर पर मुनि भिक्षा के लिए आये । स्त्री और मुनि ने भी स्मित किया । उसे देखकर शंका से युक्त हुए क्षत्रिय ने हाथ में तलवार लेकर हास्य का कारण पूछा। मुनि ने यथा-स्थित कहा । तब उस क्षत्रिय ने कहा किकहो, यह घोडी किसे जन्म देगी ? मुनि ने कहा कि - किशोरी को ! पश्चात् तलवार से घोड़ी के उदर को विदारण करने पर वह शंका रहित हुआ। उसे देखकर मुनि ने अनशन किया । क्षत्रिय ने क्षमा माँगी । साधु स्वर्ग - भागी हुए ।
तथा रात्रि में बड़े स्वर से पाठ का त्याग करना चाहिए । यदि कोई कार्य हो तो मन्द स्वर आदि से ही बोले । खुंकार और हुंकार आदि भी न करे । रात्रि के समय उसके करने में निद्रा रहित हुए छिपकली आदि हिंसक जीव मक्खी आदि के आरंभ को और पड़ौसी