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________________ ३६० उपदेश-प्रासाद - भाग १ पूछने पर मुनि ने तकवें के तंतु का वृत्तांत कहकर और अभय की प्रशंसा कर धर्माशिष दी । आलोचना और प्रतिक्रमण कर मुनि ने केवलज्ञान और मोक्ष को प्राप्त किया। जिन्होंने हाथी आदि की हिंसा को छोड़कर सर्व मुनिराज के वाक्य को अंगीकार किया था, उनके चरित्र को सुनकर पंडित सतत दया में पक्ष करें। इस प्रकार से संवत्सर के दिन परिमित उपदेश-संग्रह नामक उपदेश-प्रासाद ग्रन्थ की वृत्ति में पञ्चम स्तंभ में बहत्तरवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ। तिहत्तरवाँ व्याख्यान अब मुनियों को और गृहस्थों को हिंसा के स्थानों का वर्जन करना चाहिए, इस प्रकार से यह कहा जाता है कि ___मुख के रन्ध्र को ढंके बिना कभी-भी पढ़ना नहीं चाहिए । किसी के आगे भावी कालों का निमित्त नहीं कहना चाहिए । सुबुद्धिमंतो के द्वारा रात्रि में ऊँच स्वरों से पाठ का वर्जन करना चाहिए। .. इस प्रकार से अनेक हिंसा के स्थानों को जानकर पंडित छोड़ दें। ___ मुख के अंतराल को जो वस्त्र के आँचल आदि से ढंके बिना पठन आदि करता है, उसे वायु जीवों की हिंसा होती है । जैसे किसांख्यों के महाभारत में बीट इस प्रकार से प्रसिद्ध दारवी मुखवस्त्रिका मुख के निश्वास का निरोधन करनेवाली प्राणियों के दया निमित्त होती है । जो वें इस प्रकार से कहते हैं कि___ . हे ब्रह्मन् ! नाक आदि से अनुगमन करनेवाले एक श्वास से तथा अणु मात्र अक्षर के कहने पर सैकड़ों जीवों का हनन होता है।
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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