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________________ ३४४ उपदेश-प्रासाद - भाग १ नियम से विस्मृत हुए भी श्रीहेमचन्द्राचार्य ने कहा कि - कृत-युग से क्या जहाँ तुम नहीं हो और जहाँ तुम हो वहाँ क्या यह कलि-काल हैं ? जो तुम्हारा जन्म कलिकाल में हुआ है, उससे कलिकाल हो, कृत-युग से क्या ? इत्यादि अनेक वृत्तांत परमार्हत के विस्तार ग्रन्थ से जानें । पद्मनाभ जिनराज के शासन में जो प्रथम गणधर होंगें और जिसने कुल से आयी हुई हिंसा को छोड़ी थी, वह कुमारपाल जिनधर्म वर्धक हैं। इस प्रकार से संवत्सर के दिन परिमित उपदेश-संग्रह नामक उपदेश-प्रासाद ग्रन्थ की वृत्ति में पञ्चम स्तंभ में अड़सठवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ। उनहत्तरवा व्याख्यान अब क्रोध आदि से कोई जीव हिंसा के वचन कहते हैं, उनके प्रति यह शिक्षा है कि हिंसा विषयक वचन भी महा-अनर्थ विधायक हैं । यहाँ माता तथा पुत्र चन्द्रा और सर्ग का दृष्टांत हैं। यहाँ श्लोक में कहा गया यह वृत्तांत हैं वर्धमानपुर में सद्धड़ कुल-पुत्र था, उसकी पत्नी चन्द्रा थी। उन दोनों का पुत्र सर्ग था । सभी दुःखी थें । चन्द्रा दूसरों के घरों में कार्य करती थी और सर्ग वन से ईंधनों को ले आता था । एक बार छींके में पुत्र के लिए आहार रखकर चन्द्रा पानी लाने के लिए गयी । पुत्र वन से आया और अपनी माता को नहीं देखकर भूख-प्यास की पीड़ा से क्रोधित हुआ । इस ओर माता को आयी
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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