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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ ३४२ तक तुम्हारे देश में यह सिर का आच्छादन वस्त्र हो तथा तुझे आज के बाद बायें और दायें इस प्रकार से जीभ का युगल हो । पश्चात् भी तुम मेरी आज्ञा से स्फुरायमान जीभ करना जिससे पृथ्वी-तल पर बहन की प्रतिज्ञा की पूर्ति प्रख्यात हो । I बलवंतों के साथ कौन-सा विरोध हो, इस प्रकार के न्याय से आनाक ने इसे स्वीकार किया । उसे काष्ठ के पिंजरे में डालकर तीन दिन तक स्व-सैन्य में रखा । सामन्त लज्जित हुए । श्रीगुर्जराधिपति कुमारपाल ने गंभीरपने से उनको उपालंभ नहीं दिया । पुनः आनाक को राज्य देकर और स्व- आज्ञा को धारण कराकर वह पाटण में आया । पश्चात् सर्वत्र 'मारि' इस प्रकार के अक्षर को कोई भी नहीं बोलता था । - अब एक बार मसूरि के यश को सहन नहीं करनेवाला कोई ब्राह्मण कहने लगा कि जूँओं की लाख, शत समूहों से ढँकी, चंचल और देदीप्यमान कंबलवालें, दाँतों की मल मंडली के परिचय से दुर्गंध से रुद्ध मुखवालें, नाक की हड्डी के निरोधन से गिन-गिन होती हुई पाठप्रतिष्ठा की स्थितिवालें और सफेद बालों से ढँके हुए सिरवाले, वें यें हेमड-सेवड आ रहे हैं । इस प्रकार की निन्दा को सुनकर प्रभु ने कहा कि - हे पंडित ! विशेषण पूर्व में होता हैं, क्या आपके द्वारा नहीं पढ़ा गया हैं ? इसलिए आज के बाद 'सेवड़ - हेमड़' इस प्रकार से कहें। कुमारपाल ने उस वृत्तांत को जानकर अशस्त्रवध इस प्रकार कर उसकी वृत्ति का छेदन किया । उससे वह अत्यंत दुःख से जीने लगा । अब एक बार कृत्रिम देव रूपधारी कवि किसी के द्वारा भी नहीं पहचाना जाया जाता हाथ में लेख - पत्र को ग्रहण कर सभा में
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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