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उपदेश-प्रासाद
भाग १
३४१
नहीं कर रहा हैं ? उसने कहा कि- आनाक ने धन-दान से आपके सैन्य को वश किया हैं । राजा ने कहा कि- तुम कैसे हो ? उसने कहा कि- मैं, यह कलभ - पञ्चानन गज और आप, इस प्रकार से तीनों भी परावर्तित नहीं हुए हैं । यह सुनकर चिन्ता सहित राजा युद्ध करने के लिए उपस्थित हुआ । तब चारण ने कहा कि
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हे कुमारपाल ! तुम चिंता मत करो, चिंता से कुछ भी नहीं होता हैं । जिसने तुझे राज्य समर्पित किया है, वही चिंता करेगा । हम थोड़े हैं और शत्रु अधिक हैं, इस प्रकार से कायर चिन्ता करते हैं । मुग्ध व्यक्ति आकाश को देखकर यह विचारता है कि कौन उद्योत को कर सकतें हैं ?
उस चारण के सुशब्द को सुनकर राजा चल पड़ा । उन दोनों में युद्ध हुआ ।
इस बीच अतुल बलवाला चौलुक्य ऐसा कुमारपाल विद्युत् के समान छलांग देकर शत्रु-राजा के हाथी के स्कंध ऊपर चढा और हाथी की ध्वजा को छेदकर तथा शत्रु को भूमि के ऊपर गिराकर और हृदय के ऊपर पैर देकर कहने लगा कि - रे वाचाल ! मेरी बहन के वचन को तुम स्मरण करते हो ? मैं उसकी प्रतिज्ञा को पूर्ण करता हूँ तथा छूरि से तेरी जीभ का छेदन करता हूँ । रे पापिष्ट ! पिशाच ! आज के बाद तुम हिंसक वाक्य को कहोगे ? यम के समान दुष्प्रेक्षनीय कुमारपाल के ऐसे कहने पर पाद के ऊपर लक्षवालें राजा ने कुछभी नहीं कहा। तब बहन ने आकर पति- जीव की भिक्षा माँगी । तब राजा ने उसे कहा कि- रे अविवेकी ! तुम भगिनी - पतिपने से नहीं, किंतु दया-धर्म को अधिक मानकर छोड़े जातें हो ।
या से तुम जीवित ही छोड़े जातें हो, परंतु तुम अपने देश में गर्दन पर यह जीभ - आकृष्टि का चिह्न धारण करना । चिर समय