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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ ३३८ कुमारपाल ने मुझे देश से निष्कासित किया है । यह सुनकर रुष्ट हुए मोह ने कहा कि - हे वत्स ! तुम मत रोओ। मैं तेरे शत्रुओं को रुलाऊँगा । इस प्रकार उसे आश्वासित कर स्व-बल का गर्व करने लगा कि तीनों भुवन में वह कोई देव अथवा मानव नहीं है जो मेरी आज्ञा का लोप कर सके । मोह - राजा ने अपनी सेना को सज्ज की। कदागम रूपी मंत्री, अज्ञान राशि रूपी सेनानी, मिथ्यात्व, विषय अब्रह्म और कुध्यान रूपी भट, हिंसा रूपी कन्या का पाणिग्रहण करानेवाले और यज्ञ आदि के प्ररूपक ब्राह्मण, यें सभी चौलुक्य के साथ युद्ध कर वापिस आये । उससे मोह दुःख से निःश्वास करता हुआ विलाप करने लगा । तब राग आदि पुत्र कहने लगें कि - आप जैसे गरुड़ों को पुरुषों टिटिहरी के समान कुमारपाल की धर्म-बुद्धि के उच्छेदन में यह कौन-सा खेद हैं ? उन पुत्रों में पहले राग इस प्रकार से कहने लगा कि- हे पिताजी ! मैं अकेला भी तीन भुवनों को जीतने का शीलवाला हूँ, जैसे कि - अहल्या का जार इन्द्र हुआ था, प्रजानाथ ने अपनी पुत्री को तथा चन्द्र ने गुरु की पत्नी को भजी थीं । इस प्रकार से प्रायः कर मैंने किसको अपद पर पदगामी नहीं किया है। भुवन की उन्माद विधियों I मेरे बाणों का श्रम किस समान है ? इस प्रकार से कहने पर क्रोध ने कहा भुवन को अंध करता हूँ और बधिर करता हूँ, स-चेतन और धीर को अचेतना प्राप्त कराता हूँ जिससे कृत्य को नहीं देखता है और न ही हित को सुनता है तथा मतिमान् पुरुष पढ़े हुए का भी प्रतिसंधान नहीं कर सकता हैं । इस प्रकार से लोभ, दंभ आदि भी गर्जना करते हुए और निज -
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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