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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ ३२६ पत्नी मृगावती हैं और लोढ़क आकृति को धारण करनेवाला उसका जो आढ्यपुत्र हैं, उसके आगे यह कितना दुःख हैं, जो मुख, नेत्र, नाक आदि से रहित हैं और दुर्गन्धि पूय-रक्त स्रावी देहवाला हैं तथा जन्म के पश्चात् भूमि-गृह में रहा हुआ हैं । यह सुनकर उसे देखने की इच्छावाले, गौतम, स्वामी की आज्ञा से राज-महल में गये । अब राजा की स्त्री उन गणधर को देखकर कहने लगी कि - हे भगवन् ! अन्-विचारित और दुर्लभ ऐसा आपका आना कैसे हुआ हैं ? गणधर ने कहा कि - हे मृगावती ! प्रभु के वाक्य से तुम्हारें पुत्र को देखने के लिए आया हूँ । तब उसने सुभग आकृतिवालें अन्य पुत्र दिखाये । गणधर ने कहा कि - हे भद्रे ! जो भूमि- गृह में गुप्त हैं, उसे दिखाओ ! उसने कहा कि - हे भगवन् ! मुख- पट्टी बाँधों और एक क्षण प्रतीक्षा करो, जिससे कि भूमि गृह के उद्घाटित करने पर दुर्गन्ध दूर चली जाये । मृगावती के द्वारा उसे उद्घाटित करने पर गणधर ने वहाँ जाकर उसे देखा, जैसे कि - पैर के अंगूठे, होंठ, नाक, आँख, कान और हाथ आदि से वर्जित, षण्ढ, तथा जन्म से भी पृथक्-पृथक् पूय-रक्त का स्राव करनेवाली बाह्य और अभ्यंतर आठ-आठ नाड़ीयों से आजन्म से ही बाधित करनेवाली दुःखद वेदना को भोगनेवाले और मूर्तिमंत पाप के समान उस लोढकाकार को देखकर प्रभु के पादान्त में आकर इस प्रकार से विज्ञप्ति की कि - हे स्वामी ! यह किस कर्म से नारक के समान दुःख का वेदन कर रहा हैं ? प्रभु ने कहा कि - शतद्वार नगर में धनपति राजा का राष्ट्रकूट नामक सेवक पाँच सो गाँवों का स्वामी था । सात व्यसनों में रत वह बड़े कर से लोगों को दुःखित कर रहा था, कान, नेत्र आदि के भेदन से विडंबित कर रहा था । एक दिन स्व- देह में उसे सोलह रोग उत्पन्न हुए, यें
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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