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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ ३२६ इत्यादि युक्ति से भी स्व असद् आग्रह को नहीं छोड़नेवाले राजा को उन दोनों ने दृढ़ पाश- बंधनो से बाँधा और जर्जरित अवयव वाला किया, पुनः उन दोनों ने कृपा से उसे छोड़ दिया । प्रातःकाल में लज्जा से वह अंतःपुर में गया । अब हरिबल ने सोचा कि कदाचित् यह मुझे कपट से मार डालें, इसलिए मैं कपट कर राजा के चक्षु ऐसे मंत्री को यम-अतिथि करता हूँ, क्योंकि मूढ़ बुद्धिवालें वें पराभव को प्राप्त करते हैं, जो मायावियों में मायावी नहीं होते हैं । अंग से नहीं ढँके हुए तथा-विधों को तीक्ष्ण बाण के समान ही शठ पुरुष प्रवेश कर मार देते हैं । 1 I इस प्रकार से सोचकर यम-राजा के द्वारपाल का रूप धारण करनेवाले किसी पुरुष के साथ हरिबल राजा की सभा में आया । उसे देखकर विस्मय से युक्त हुए राजा ने यम का स्वरूप पूछा । उसने भी स्व-बुद्धि से यम का वर्णन किया और पुनः भी कहने लगा कि - हे स्वामी ! वचन से यम का वर्णन क्या-क्या किया जा सकता हैं ? क्योंकियोगीन्द्र भी यम के भय से ही योगाभ्यास को भज रहे हैं । बहुत कहने से क्या लाभ हैं ? वन के समान त्रिभुवन भी उसकी सेवा कर रहा हैं । हे राजन् ! मैंने यम को अच्छी युक्ति से निमंत्रित किया है, तब मुझे इस अपने द्वारपाल को देकर कहा कि- मेरी ऋद्धि को देखने के लिए तेरे राजा और मंत्री को इसके साथ भेजो। इसलिए शीघ्र से वहाँ पर पैर रखें जाएँ । प्रतिहारी ने भी वैसा ही कहा । राजा को जलते हुए अग्नि में प्रवेश करने के लिए उत्सुक जानकर स्वामी - द्रोह की बुद्धि से हरिबल ने कहा कि - हे स्वामी ! आपके आगमन का ज्ञापन कराने
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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