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उपदेश-प्रासाद - भाग १ से स्व-आगमन का ज्ञापन करने के लिए किसी पुरुष को भेजा । उसने भी जाकर के राजा से कहा कि- बिभीषण राजा को निमंत्रित कर और उसकी पुत्री से विवाह कर, अहो ! चतुर हरिबल यहाँ उपवन में आया हुआ हैं।
___ इस प्रकार से कर्ण-कटुक वाक्य को सुनकर विस्मय से युक्त हुए राजा ने जन-अपवाद के भय से प्रिया से युक्त उसे महोत्सवों के साथ स्व-नगर में प्रवेश कराया । राजा के द्वारा वृत्तांत के बारे में पूछने पर उसने कहा कि
यहाँ से मैं चला और क्रम से दुस्तर समुद्र को प्राप्त कर अत्यंत ही उद्विग्न हुआ, उतने में ही समुद्र से आये एक राक्षस को देखकर
और निर्भय होकर मैंने लंका प्राप्ति का उपाय पूछा । उसने भी कहा कि- जो पुरुष यहाँ पर काष्ठ की चिता में प्रविष्ट होता हैं, उसी का ही वहाँ पर प्रवेश होता हैं । यह सुनकर-प्रभु का कार्य सेवकों को अवश्य ही करना चाहिए, इस प्रकार से स्वीकार कर मैंने चिता में प्रवेश किया । देह की भस्म को लेकर और वृत्तांत कहकर राक्षस ने उसे बिभीषण के आगे रखा । सात्त्विक-वृत्रि से संतुष्ट हुए उस राजा ने मुझे जीवित किया पश्चात् उसने स्व-पुत्री दी । मैंने बिभीषण से आपका कहा हुआ निमंत्रण का वृत्तांत कहा । तब उसने कहा किमहान् पुरुषों को न्यून गृह में गमन मान-हानिकारी हैं, इसलिए पूर्व में तेरे राजा का यहाँ पर आगमन योग्य हैं, पश्चात् तेरा कहा करूँगा, इस विषय में तुम इस निशानी को ग्रहण करो, इस प्रकार से कहकर
और चन्द्रहास तलवार देकर स्व-शक्ति से प्रिया सहित मुझे यहाँ पर ले आया । इस प्रकार से वचन के उसके वाक्य को सत्य मानकर मंत्री के साथ सोचने लगा कि- अहो ! यह जीवित ही आया हैं, पुनः मैं इसे छल से दुःख में गिराता हूँ, क्योंकि