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________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ १७ क्या हैं ? यथा-आयु निवृत्ति काल वह हैं जिससे कि नारकी अथवा देव के द्वारा यथा-आयु निवृत्ति होती है, वह यह काल हैं । और वह मरण-काल क्या हैं ? मरण-काल में शरीर से जीव अथवा जीव से शरीर बाहर निकलता है, वह यह मरण-काल है । और यह अद्धाकाल क्या है ? अद्धाकाल अनेक प्रकार के कहें गये है और वह समय, आवलिका और उत्सर्पिणी तक प्राप्त होता हैं। इत्यादि सुनकर वह सुदर्शन-श्रेष्ठी कहने लगा कि- हे स्वामी ! पल्योपम-सागरोपम आदि का क्षय कैसे होता है ? स्वामी ने कहा कि- हे सुदर्शन ! पूर्व में तेरे द्वारा यह काल अनुभवित किया गया है। पूर्व के भव में तुम ब्रह्मकल्प में दस- सागरोपम स्थितिवालें देव हुए थे ! इसप्रकार पूर्व भव के स्वरूप को सुनकर वैराग्य उत्पन्न होने से सुदर्शन ने स्वामी के पास में संयम को ग्रहण किया और पूर्व भव के व्रत पालन से मिले फल पर विश्वास की उत्पत्ति होने से इस भव में ग्रहण कीये हुए व्रतवालेंवें चौदह-पूर्वी होकर और कर्म-क्षय से केवल ज्ञान को प्राप्त कर परमानन्द-पद को प्राप्त किया । जिनको कामधेनु के समान देव आदि तत्त्वों में यथार्थ बोध होता हैं, जिस प्रकार से सम्यग् दर्शन से महाबल राजा को समृद्धि हुई थी, वैसे ही उनको समृद्धि प्राप्त होती है । इस प्रकार संवत्सर दिन परिमित उपदेश संग्रह नामक उपदेश-प्रासाद ग्रन्थ की वृत्ति में इस प्रथम स्तंभ में सम्यक्त्व के शुभ फलोदय से युक्त दुसरा महाबल का चरित्र कहा गया है ।
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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