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________________ १६ उपदेश-प्रासाद - भाग १ से वहन करनेवाली शिबिका में चढ़कर महाबल गुरु के पास में आया। तंब माता-पिता ने कहा- हे वत्स ! तेरे द्वारा इस चारित्र में अत्यंत प्रयत्न करना चाहिए, इस प्रकार कहकर और सूरीश्वर को प्रणाम कर स्व-नगर में आये । तत्पश्चात् महाबल ने स्वयं पंच-मुष्टि लोचकर गुरु के हाथ से दीक्षा ग्रहण की । उसके बाद महाबल-ऋषि तीन गुप्ति और पाँच समितियों से युक्त विनय से चौदह पूर्वो को पढ़ने लगें। विविध तपों के द्वारा बारह वर्ष तक संयम का परिपालन कर और पाप की आलोचना तथा प्रतिक्रमण कर एक मास के अनशन से ब्रह्मलोक में दस-सागरोपम की स्थितिवाले देव हुए । इनका पाँचवेंकल्प में गमन किसी विस्मरण आदि से चौदह पूर्वो के न्यूनत्व के हेतु से संभावना की जाती है । अन्यथा चौदह पूर्वी की जघन्य से भी लान्तक में उत्पत्ति होती है । और वहाँ से च्यवकर वाणिज ग्राम में बड़े श्रेष्ठी के कुल में सुदर्शन नामक पुत्र हुआ । प्रौढ अवस्था को प्राप्त हुआ वह सुदर्शन श्रेष्ठी एक दिन उस नगर के उद्यान में श्रीवीरजिन भगवान् के पाद-कमल के वंदन के लिए आया । तब स्वामी पर्षदा में सर्व जीवों के हित के लिए समय आदि काल-स्वरूप की प्ररूपणा कर रहे थे । उसे सुनकर विस्मित हुआ श्रेष्ठी कहने लगा कि- हे स्वामी ! कितने प्रकार के काल हैं ? यहाँ पर भगवान् के द्वारा कहा गया यह आलापक हैं कि- हे सुदर्शन ! चार प्रकार के काल कहें गये हैं, जैसे कि- प्रमाण-काल, यथा-आयु निवृत्तिकाल, मृत्युकाल और अद्धा-काल । __वह प्रमाण-काल क्या हैं ? दो प्रकार के प्रमाण-काल कहें गये हैं, जैसे कि- चार पोरसीवाला दिवस और चार पोरसीवाली रात्री होती है, इत्यादि यह जानें । और यह यथा-आयु निवृत्ति काल
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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