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उपदेश-प्रासाद - भाग १ प्रत्याख्यान का पालन करेंगें। वें इस प्रकार की व्यवस्था को स्थापित करतें हैं । राजा आदि अभियोग से त्रस को मारते हुए को भी व्रतभंग नहीं होता, यह कैसे हो? जो प्रश्न हैं तो भावार्थकथानक से जाना जाय और वह यह हैं
रत्नपुर में रत्नशेखर राजा ने स्व अन्तःपुर आदि स्त्रियों को तथा नागरिकों को स्वेच्छा से क्रीड़ा रूप कौमुदी महोत्सव की अनुज्ञा दी। उसने उद्घोषणा करायी कि- नगर के मध्य में कोई भी पुरुष न रहें । सायंकाल में राजा आदि सभी पुरुष उद्यान में गये । इस ओर क्रय-विक्रय आदि में व्यग्र हुए एक व्यापारी के छह पुत्र नगर के मध्य में ही रहें थें । नगर के द्वार स्थगित हो गये । महोत्सव के निष्क्रान्त हो जाने पर राजा ने आरक्षकों से कहा कि - देखो, नगर में कोई पुरुष है अथवा नहीं विलोकन करते हुए आरक्षकों ने उस छह पुत्रों को देखा
और रस्सी आदि से बाँधकर राजा के आगे रखा । क्रोधित हुए राजा ने छह को भी वध का आदेश दिया, क्योंकि
राजाओं का आज्ञा का भंग, गुरुओं का मान मर्दन और लोगों का मर्म-वाक्य, ये अशस्त्र वध कहें गये हैं।
शोक से आकुलित उनके पिता ने राजा से विज्ञप्ति की कि-हे देव ! आप हमारा कुल-क्षय मत करो, सर्वधन ग्रहण करो और पुत्रों को छोड़ों । इस प्रकार से कहने पर भी राजा ने किसी भी प्रकार से नहीं छोड़ा । सभी के घात में प्रवृत्त राजा को जानकर पिता ने उन सभी पुत्रों के मध्य में से पाँचों के मोचन की याचना की । राजा ने पाँचों को भी नहीं छोड़ा । पश्चात् चारों की याचना की, तो भी राजा नहीं मान रहा था, पश्चात् तीनों की याचना की । राजा ने उनको भी नहीं छोड़ा। उसने दो पुत्र माँगें । राजा ने उन दोनों को भी नहीं छोड़ा । पिता ने एक पुत्र की याचना की । समस्त पौर-जन की विज्ञप्ति से राजा ने एक