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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ २७८ साफ- कर्त्ता था, चारों भी मेघ गन्ध-पानी के वर्षुक थें, यम अपनी भैंस से जल वहन कर्त्ता था, आरती उतारनेवाली सात भी माताएँ थी, शेष नाग छत्र धारक था, सरस्वती वीणा वादिनी, रंभा नृत्यकारिका, तुंबुरु गायक, नारद दूत, महेश्वर ताल - वादक, सूर्य अन्न पकानेवाला, चन्द्र अमृत स्रावी, मंगलग्रह भैंस को दोहनेवाला, बुध आईना दीखानेवाला, गुरु घड़ी यंत्र वादक, शुक्र मन्त्रीश्वर, मन्द पृष्ठ-रक्षक, अट्ठासी हजार ऋषि प्याऊ - पालक, नारायण दीपिकाधारी, ब्रह्मा पुरोहित, इत्यादि ऋद्धि से समृद्ध' भी रावण ने पर - स्त्री के ग्रहण से दुःख को प्राप्त किया था । इस प्रकार से ही अन्य दिन पश्चिम दिशा में जाते हुए कोकास ने शत्रुञ्जय - रैवत प्रबंध का वर्णन किया । इस प्रकार से उत्तर दिशा में कैलास-अष्टापद नामक तीर्थ का तथा शाश्वत सिद्धायतन, जिन-कल्याणक स्थानादि को दिखाते हुए वह इस प्रकार से हस्तिनापुर के स्वरूप को कहने लगा कि - हे राजन् ! यहाँ पर सनत्कुमार आदि पाँच चक्रवर्ती, पांडव, ऋषभदेव का वार्षिक तप का पारणा, शान्ति आदि तीन जिनों का मोक्ष कल्याणक को छोड़कर चार कल्याणक, विष्णुकुमार का उत्तर वैक्रिय की विकुर्वणा, कार्तिक श्रेष्ठी का एक हजार और आठ पुरुषों के साथ व्रत, प्रव्रज्या आदि अनेक शुभ कार्य हुए थें । प्रति-दिन इत्यादि पूर्व तीर्थों के माहात्म्य आदि के श्रवण से जिन धर्म के मर्म को प्राप्त करनेवाले राजा को कोकास गीतार्थ के समीप में ले गया। गुरु ने देशना दी कि - गृहस्थों को सम्यक्त्व मूल पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षापद व्रत हैं । दूसरे मेघों के समान ही अन्य धर्म फलों से विसंवादित भी होते है किन्तु पुष्करावर्त्त मेघ के समान ही जैन-धर्म 1. अजैन रामायण का कथन -
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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