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________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ संशय आदि से रहित सम्यग् देव आदि तीनों के तत्त्व-ज्ञान को और दर्शन-मोहनीय कर्म के उपशम आदि से उत्पन्न हुए अर्हत् के द्वारा कहे गये सिद्धान्तों के ऊपर श्रद्धा रूप सद्-भाव विशेष को ही दर्शन कहते है, यह तात्पर्य है। यहाँ पर कहा हुआ अर्थ महाबल की कथा से दृढ किया जाता है कि- हस्तिनापुर में बल नामक राजा था और उसकी प्रभावती रानी थी। प्रभावती को सिंह के स्वप्न से सूचित महाबल नामक पुत्र हुआ और क्रम से उसने यौवन को प्राप्त किया । पिता के द्वारा भोग में समर्थ जानकर वह एक ही दिन में आठ श्रेष्ठ राज-कन्याओं के साथ विवाहित किया गया । और पुत्र के लिए स्वर्णमय आठ महल बनवाये । उसके बाद पिता ने प्रेम से उसे धन दिया । उसे पञ्चमांग सूत्र से जाने कि- आठ करोड़ हिरण्य, आठ करोड़ स्वर्ण, आठ मुकुट, आठ कुंडल के जोड़े, आठ नंद, आठ भद्रासन और सर्व रत्नों को इत्यादि प्रचुर वस्तुओं को उनके भोग के लिए दी। पश्चात् वह कुमार उन राज-कन्याओं के साथ सुख को भोगने लगा। एक दिन महाबल सर्व-ऋद्धि युक्त उद्यान में जाकर पाँच सो मुनियों के स्वामी तथा विमलनाथ परंपरा के धर्मघोष सूरीश्वर को नमस्कार कर उनकी कही हुई देशना को सुनने लगा कि हे लोगों ! संसार का स्वरूप असार ही है, इस प्रकार चित्त में विचारकर मोक्ष देनेवाले धर्म में प्रयत्न करो । सभी धर्म-कृत्यों का मूल सम्यक्त्व कहा जाता है और वह देव में, गुरु में और तत्त्व में सम्यक् श्रद्धा से होता हैं । सर्व व्रत, दान, जिन-पूजाएँ, क्रिया, जप, ध्यान, तप और शास्त्र, तीर्थ, गुणों का अर्जन सम्यक्त्व की सेवा सहित मोक्ष के लिए होता है । इस प्रकार गुरु की वाणी को सुनकर महाबल ने कहा- हे
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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