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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ २६६ उदय को प्राप्त हुए मिथ्यात्व मोहनीय के क्षय और उपशम से संभवित क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, सम्यक्त्व गुण योगी को होता हैं । अनंतानुबंधि के क्षय हो जाने पर तथा मिथ्यात्व - मिश्र के सम्यक् प्रकार से क्षय हो जाने से क्षायिक के संमुख, सम्यक्त्व के अन्त्य अंश को भोगनेवाला और क्षपक श्रेणि को प्राप्त हुए प्राणी को वेदक नामक सम्यक्त्व होता हैं । - मिथ्यात्व, मिश्र सम्यक्त्व के साथ अनंतानुबंधि के क्षय से जीव को जो तत्त्व-श्रद्धा होती हैं वह क्षायिक है । गुण से यह सम्यग् - दर्शन तीन प्रकार से होता हैं और वें नाम से इस प्रकार से हैं- रोचक, दीपक और कारक । वहाँ हेतु और उदाहरण के बिना शास्त्र में कहे हुए तत्त्वों में जो प्रत्यय उत्पत्ति रूपी दृष्टि हैं, वह रोचक कहा गया हैं । I यहाँ रोचक के विषय में यह कृष्ण वासुदेव का प्रबन्ध हैंएक बार द्वारिका नगरी में वर्षा - रात्रि में नेमिजिन ने समवसरण किया था । कृष्ण ने पूछा कि - मुनि वर्षा में विहार क्यों नहीं करते हैं ? स्वामी ने कहा कि- बहुत जीवों से भूमि के आकुलित हो जाने से । उससे वह भी अंतः पुर के मध्य में रहते हुए चातुर्मासी को व्यतीत करने लगा । कृष्ण का वीरक नामक सेवक राज-दर्शन को प्राप्त नहीं करता हुआ नित्य ही प्रवेश द्वार के ऊपर पुष्प आदि से पूजा कर चला जाता था, परंतु भोजन, वस्त्र, दाढी - मूँछ, नख की शुद्धि नहीं कर रहा था । वर्षा काल के व्यतीत हो जाने पर वीरक ने आकर के राजा को नमस्कार किया । कृष्ण ने पूछा किदिखायी दे रहे हो ? तुम कृश क्यों - द्वारपाल ने विज्ञप्ति की कि - देवपाद को नहीं देखने पर भोजन आदि न करूँ, उससे यह ऐसा हुआ हैं । यह सुनकर संतुष्ट हुए
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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