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________________ २४६ उपदेश-प्रासाद - भाग १ प्रकार से सम्यक्त्व का विचार करें। इस विषय में विक्रमराजा का उदाहरण हैं और वह यह हैं कुसुमपुर में हरितिलक राजा था और उसकी पत्नी गौरी थी। उन दोनों का पुत्र विक्रम था। पिता ने उसे बत्तीस राज-कन्याओं के साथ में विवाहित किया । उन राज-कन्याओं के साथ में दोगुंदुक देव के समान सौख्य का अनुभव करते हुए दुष्कर्म के वश से अकस्मात् ही खाँसी, श्वास और ज्वर आदि रोगों से उपद्रवित हुआ बहुत मंत्र, तंत्र और औषधि आदि से उपचारित करने पर भी शान्ति को प्राप्त नहीं हो रहा था । उससे रोग से पीड़ित हुए विक्रम ने रोग की शान्ति के लिए धनंजय-यक्ष को सो भैंसें मानी, वह भी व्यर्थ हुआ । __ इस ओर वन के रक्षक से वन में आये हुए विमलकेवली को जानकर वंदन करने के लिए उत्सुक हुआ राजा वहाँ पर गया । कुमार ने कहा कि- हे तात ! आप मुझे वहाँ पर ले जाओ । मुनि के दर्शन से मेरी व्याधि का क्षय और पाप का क्षय हो । राजा ने वैसा किया । केवली ने देशना दी । राजा ने विक्रम के महा-व्याधि का कारण पूछा । केवली ने कहा पूर्व में अन्याय का मंदिर पद्म राजा था । एक दिन उसने शिकार करते हुए प्रतिमा में रहे हुए साधुको देखकर निष्कारण ही वैर का चिन्तन करते हुए मुनि को बाण से मारा । तब धार्मिक प्रधान आदि ने राजा को पिंजरे में डाला और उसके पुत्र को राज्य के ऊपर स्थापित किया । समाधि ध्यान से मुनि सर्वार्थसिद्ध विमान में देव हुए । अब कितने ही दिनों के बाद पिंजरे से निकालकर नगर से बाहर किया गया वह वन में इधर-उधर भ्रमण करने लगा । उस राजा ने द्वेष से मुनि को मारा । तब मुनि ने ज्ञान से उसे दुराचारी जानकर तेजो-लेश्या से भस्मसात् किया और वह मरकर के सातवीं
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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