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________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ . २४३ एक दिन राजा पुरोहित और सुदर्शन सहित क्रीड़ा करने के लिए उद्यान में गया । वाहन में चढ़ी हुई अभया रानी भी कपिला के साथ में वन में आयी । इस ओर कपिला ने छह पुत्रों से युक्त सुदर्शन की प्रिया को मार्ग में देखकर-यह स्त्री कौन हैं ? इस प्रकार अभया से पूछा । उसने कहा कि- यह श्रेष्ठी की स्त्री हैं और यें उसके पुत्र हैं। तब कपिला ने मूल से उस वृत्तांत को कहा । रानी ने उसे कहा कि- इसने छल से तुझ सरल स्त्री को ठगा हैं । कपिला ने कहा कि- हे देवी ! तेरी भी चतुरता को मैं तब मानूँगी, जब तुम इसके साथ में क्रीड़ा करोगी, इस प्रकार के उसके वचन को सुनकर रानी ने उसे अंगीकार किया। एक बार राजा आदि के वन में क्रीड़ा करने के लिए चले जाने पर शून्य गृह में कायोत्सर्ग में स्थित सुदर्शन को कामयक्ष की मूर्ति के दंभ से वाहन में चढ़ाकर पंडिता नामक स्व-धात्री के द्वारा लाकर के स्व-भुवन के अंदर गुप्त-रीति से रखकर अभया कामविभ्रम आदि दिखाने के साथ में अत्यंत प्रार्थना करने लगी। तो भी सुदर्शन का मन लेश मात्र से भी चलित नहीं हुआ । अभया स्तन-उपपीड़ से उसे सर्व अंगों में आलिंगन देने लगी, तो भी चित्त क्षोभित नहीं हुआ। तब कुपित हुई अभया ने पूत्कार किया। उसे सुनकर रक्षक उसे पकड़कर राजा के आगे ले गये । पूछने पर भी अभया के ऊपर दया से उसने मौन का आश्रय लिया । उससे दोष की संभावना कर रुष्ट हुए राजा ने कहा कि- इसे विडंबित कर और नगर में भ्रमण कराकर मारो, ऐसा रक्षकों को आदेश दिया । वैसा कर रक्षकों के द्वारा ले जाये जाते हुए सुदर्शन को उसकी प्रिया ने देखा । तब उस प्रिया ने कलंक के उतर जाने तक जिनेश्वर के आगे कायोत्सर्ग किया। इस ओर रक्षकों ने उसे शूलि पर चढ़ाया और वह शूलि सिंहासन हुई । अब रक्षकों ने उसके वध के लिए तलवार से प्रहार
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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