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उपदेश-प्रासाद - भाग १ बन्धु है ? साध्वी ने नमि से सर्व संबंध के बारे में कहा । उसे सुनकर और स्व-पिता के नाम से अंकित अंगूठी को देखकर तथा निश्चय कर राजा को विशेष से विश्वास उत्पन्न हुआ । इस प्रकार से नमि को युद्ध से पीछे लौटाकर और चन्द्रयशा के समीप में जाकर सर्व व्यतिकर कहकर साध्वी ने परस्पर प्रीति युक्त किया । स्वयं ही व्रत की इच्छावाले चन्द्रयशा ने स्व बंधु नमि का अपने राज्य के ऊपर अभिषेक कर दीक्षा ग्रहण की।
एक दिन अखंड दोनों राज्यों का पालन करते हुए नमि के देह में छह मासिक महा-दाह ज्वर उत्पन्न हुआ। अनेक आयुर्वेदियों के द्वारा चिकित्सा करने पर भी उसका दाह शान्ति को प्राप्त नहीं हुआ। एक दिन वैद्यों के कथन से सभी रानियाँ चंदन को घिसने लगी। परस्पर संघर्ष से उन रानियों के कंगनों का शब्द हुआ । राजा उस शब्द को सुनने में असमर्थ हुआ । पति के आदेश से स्त्रियों ने एक-एक कंगन को धारण किया । तब राजा ने पूछा कि- अब क्यों कंगनों का आवाज नहीं सुनायी दे रहा हैं ? उन्होंने एक-एक कंगन दिखाया ।
इस ओर नमि राजा के चारित्र आवारक कर्म बंधन के तूट जाने पर यह अध्यवसाय उत्पन्न हुआ
कंगन के समूह के दृष्टांत से निश्चय से बहु परिग्रहवाला जीव दुःख का वेदन करता हैं, उससे एकाकीपना ही श्रेष्ठ हैं । इस प्रकार से दाह की उपशान्ति के लिए एकाकी विहार को सोचते हुए उसने स्वप्न में मेरु के ऊपर श्वेत गज पर चढ़े हुए खुद को देखा । मैंने पूर्व में भी कहीं पर ऐसे स्वर्णमय पर्वत को देखा हैं, इस प्रकार के ऊहापोह के वश से उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ । वह पूर्व भव में अगणनीय पुण्य स्वरूपवाले श्रामण्य के पालन से, लक्ष्मी के माप रहित पुष्पोत्तर विमान में श्रेष्ठ देव हुआ था। तब उस देव ने जिनों