SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ २३८ देखकर मणिप्रभ विद्याधर ने- तूंने यह क्या अनुचित किया है ? इस प्रकार से उस देव को उपालंभ दिया । चारण श्रमण मुनि ने तब देव के पूर्व भव के स्वरूप को कहकर उससे कहा कि- धर्माचार्य का अनुस्मरण कर यह देव यहाँ पर शीघ्र आया है, यह योग्य है, जो इसने मुनियों को छोड़कर पहले इस महासती को नमस्कार किया है । क्योंकि यति के द्वारा अथवा श्रावक के द्वारा जो अर्हत्-धर्म में स्थिर किया गया है, वही उसका धर्माचार्य होता है, इसमें संशय नहीं हैं। इस प्रकार से यह सुनकर विद्याधर ने उस देव से क्षमा माँगी। मुनि भगवंत ने विद्याधर को उपदेश द्वारा वासना से मुक्त किया। देव ने मदनरेखा को मिथिला में छोड़ी । वहाँ पर सुख से युक्त पुत्र को जानकर स्वस्थ चित्तवाली हुई उसने प्रवर्तिनी के पास में दीक्षा ग्रहण की । उस बालक का नमि नाम किया । क्रम से यौवन को प्राप्त हुए नमि के पिता ने एक हजार और आठ कन्याओं से विवाह कराया। पद्मरथ नमि को राज्य के ऊपर स्थापित कर स्वयं ने दीक्षा ग्रहण की। . इस ओर जिस रात्रि में मणिरथ ने बंधु को मारा था, उस रात्रि में काले सर्प से डंसा हुआ वह रौद्रध्यान में रक्त हुआ चतुर्थ नरक में गया । तब युगबाहु का पुत्र चन्द्रयशा राज्याधिकारी हुआ। ___एक दिन नमि राजा का पट्ट हस्ती आलान स्तंभ को उखाड़कर चंद्रयशा की राज्य सीमा पर आया, चन्द्रयशा ने उसे ग्रहण किया । नमि ने दूत के मुख से याचना की, फिर भी उसने नहीं दिया । तब नमि युद्ध के लिए वहाँ आकर और उसकी नगरी को रोककर वहाँ पर स्थित हुआ । साध्वी ने उस वृत्तांत को जानकर स्वयं ही नमि राजा से कहा कि- हे नमि ! बड़े भाई के साथ युद्ध करना योग्य नहीं हैं । उसे सुनकर विस्मित हुए नमि ने पूछा कि- कैसे यह मेरा
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy