________________
२३२
उपदेश-प्रासाद
भाग १
कहा कि - यह नरकगामी हैं । आनुपूर्वी इसके सम्मुख आ गयी हैं, इस लिए सुख के हेतु दुःख के लिए हो रहे हैं। तुम नीरस आहार का दान, खारे पानी का पान, गधे और कुत्ते के शब्दों को सुनाना, तीक्ष्ण काँटों की शय्या और अशुचि विलेपन आदि का उपचार करो, जैसे कि सुख हो । सुलस के वैसा करने पर उसे शाता हुई । वहाँ से मरकर सातवीं नरक में गया । प्रत्यक्ष पाप के फल को देखकर उसका पुत्र सुलस मंत्री अभयकुमार और श्रीवीर के वचन से श्रावक हुआ ।
अब एक दिन माता-बहन आदि स्वजन वृद्धों ने मिलकर उसे कहा कि- तुम पिता के समान पाप करो, धन के समान हम पाप समूह को विभाजित कर लेंगें । इस प्रकार से प्रेरित कीये गये सुलस ने कुठार के प्रहार से लेश-मात्र से स्व पैर को ही छेद दिया और पृथ्वी के ऊपर गिर पड़ा । उसने कहा कि- पाप के समान ही अब तुम मेरे दुःख को विभाजित कर ग्रहण करो, ऐसे वाक्य से वें मौन हो गये किन्तु सुलस ने जीव- वध नहीं किया, क्योंकि
सौकरिक के पुत्र सुलस के समान जो मनुष्य सुगति के मार्ग को अच्छी प्रकार से जानतें हैं, वें मरण की भी इच्छा करतें हैं किन्तु मन से भी पर - पीड़ा को नहीं करते हैं ।
क्रम से श्रावकत्व का परिपालन कर वह सुलस देव हुआ । इस विषय में आरोग्यं ब्राह्मण का यह उदाहरण हैंउज्जयिनी में बाल्य काल से ही रोग की बहुलता से रोग ब्राह्मण के नाम से प्रसिद्ध ब्राह्मण था । लोगों से उस नाम को सुनकर वह प्रति-दिन खेद को वहन करता था । एक दिन देशना करते हुए मुनि से इस धर्म - वाक्य को सुना
स्वामी! मेरा आयु शीघ्र से जा रहा हैं न कि पाप - बुद्धि । वय व्यतीत हो चुकी हैं लेकिन विषयों की अभिलाषा नहीं गयी । औषधि